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________________ तरफ की १ प्रतिमा पाषाणमय है, पश्चिम द्वार में तीनों प्रतिमाएँ पित्तलमय हैं । ऊपर दूसरे खण्ड में प्रत्येक द्वार में एक एक पित्तलमय प्रतिभा है, पूर्वाभिमुख प्रतिमा प्राचीन होने से उस पर लेख नहीं है, बाकी तीन प्रतिमाओं के ऊपर लेख हैं, वे लिख लिये गये हैं, द्वितीय खण्ड में कुल प्रतिमाएं ४ हैं। अचलगढ़ के चौमुखजी में प्रतिमाएं १६ हैं, जिनमें २ धातु के काउसग्गिए, २ पाषाण के काउसग्गिए और १ प्रतिमा पाषाण की और नव प्रतिमाएं धातु की, कुल १६ । चौमुखजो के बाहर मण्डप में आई हुई चार बैठकों की ६ प्रतिमायें मिलाने से कुल प्रतिमाएं २५ हैं, नीचे के चौमुखजी के निकटवर्ती अहमदाबाद वाले के मन्दिर की २७ प्रतिमायें और कुन्थुनाथजी के मन्दिर की कुल १७४ प्रतिमाओं में केवल १ पाषाण की और शेष सब धातु की हैं, धातु की प्रतिमाओं में एक समवसरण और पांच छूटी प्रतिमाओं के सिवाय शेष सब पंचतीथियां हैं। नीचे शान्तिनाथजी के मन्दिरजी में ४ प्रतिमायें हैं, जिनमें दो कायोत्सर्गिक और दो छुट्टी प्रतिमायें, मूलनायक शान्तिनाथ सपरिकर और तोरण सहित हैं। (५) अचलगढ के रास्ते में देलवाड़े से चार माइल ऊपर ओरिसा नामक एक गांव आता है, वहां एक जैन मन्दिर है और उसमें कुल ३ प्रतिमायें हैं, मूलनायक ऋषभदेव और आसपास में महावीर और पार्श्वनाथ हैं ' अर्बुदकल्प' के लेखानुसार पंद्रहवीं शती में इस मन्दिर में शान्तिनाथ मूलनायक थे, परन्तु बाद में ऋषभदेव को मूलनायक बैठाया है। यहां पर मन्दिरजी में प्रक्षालन का जल डालने के लिये एक तीन फुट ऊंची कुण्डी बनी हुई हैं जिसमें पीले फूलों की जाई की बेल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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