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अचलगढ़ के जैन मन्दिर और शिलालेख
अचलगढ देलवाड़ा से पांच माइल से अधिक पूर्व दिशा में एक टेकरी पर आया हुआ है।
(१) अचलगढ़ पहुँचने के पहले एक बड़ा जैन मन्दिर आता है, मन्दिर पुराना है, मन्दिर में मूल नायक परिकर युक्त शान्तिनाथजी हैं, दाहिने हाथ पर गभारे में एक और मूर्ति है, गभारे के बाहर दो कायोत्सर्गिक प्रतिमाएँ हैं, दाहिनी तरफ़ की कायोत्सर्गिक प्रतिमा की पीठिका पर सं. १३०२ के ज्येष्ठ सुदि ६ शुक्रवार का एक लेख भी है।
(२) शान्तिनाथ के मन्दिर से आगे अचलगढ की तरफ जाते समय दरवाजे के बाहर अचलेश्वर नामक महादेव जी का मन्दिर है, उसको बाँए हाथ की तरफ़ छोड़कर अचलगढ में प्रवेश होता है और कुछ ऊपर चढने के बाद दाहिने हाथ की तरफ कुन्थुनाथजी का जैन मन्दिर है, इसमें दूसरी भी अनेक जिन प्रतिमाए हैं, जिन में अधिकांश धातु की पंचतीथियाँ हैं ।
(३) कारखाने के प्रागे धर्मशाला में होकर ऊंचे चढने पर सामने आदिनाथ का मन्दिर आएगा, गभारे में तीन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं परिक्रमा में छोटी छोटी २४ देहरियाँ और उतनी ही प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं, एक गोखला चक्र श्वरी का है, उसमें चक्रेश्वरी की एक मूर्ति प्रतिष्ठित है।
यह जिन मन्दिर अहमदाबाद की बीसा श्रीमाली ज्ञाती के सेठ दो० पनिया के पौत्र दो० सनिया के पुत्र दो० शान्तिदास ने बनवाया था और इसमें श्रीआदिनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा श्री विजयहीरसूरि के पट्टधर श्री विजयसेन सूरि के पट्ट प्रतिष्ठित श्री विजयतिलकसूरि के पट्टधर श्री विजयानन्दसूरि के पट्टोद्योतकारक
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