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लेख है और प्रतिष्ठापक आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि खरतर गच्छीय हैं और प्रतिष्ठा कराने वाला गृहस्थ संघवी मंडलिक है।
निचली प्रथम भूमि में कुल प्रतिमाएँ २१ हैं, द्वितीय भूमि में पूर्व तरफ के गर्भगृह में एक अम्बिका देवी की मूर्ति है जिसकी प्रतिष्ठा सं. १५१५ के वर्ष में आषाढ वदि १ शुक्रवार को ऊकेश वंशीय और दरडा गोत्रीय शा. आशा की भार्या सौखू के पुत्र सं मण्डलिक उसकी भार्या हीराई, उसके पुत्र साजन द्वि. भार्या रोहिणी प्रमुख परिवार परिवृत संघवी मण्डलिक ने अम्बिका देवी की मूर्ति बनवाई और आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने इसको प्रतिष्ठित किया।
द्वितीय भूमि में अम्बिका के अतिरिक्त कुल जिन प्रतिमाएँ ३६ प्रतिष्ठित हैं।
तीसरी भूमि में पार्श्वनाथ की चार प्रतिमाएँ हैं, इनकी प्रतिष्ठा भी मण्डलिक ने सं. १५१५ के आसाढ बदि १ शुक्रवार को करवाई थी।
५ महावीर मन्दिर"अर्बद कल्प'' के २३ वे पद्य में लेखक ने चौलुक्य कुल चन्द्रमा राजा कुमारपाल द्वारा निर्मापित भगवान् महावीर के चैत्य का वर्णन किया है, परन्तु कुमार पाल द्वारा बनाए गए महावीर के चैत्य का आज कहों भो देलवाड़े में पता नहीं है, विमलवसति के बाहर उत्तराभिमुख एक महावीर का मन्दिर अवश्य है, परन्तु वह कुमारपाल कालीन नहीं मौजूदा मन्दिर ज्यादा से ज्यादा दो सौ तीन सौ वर्षों का पुराना हो सकता है, कुमार पाल निर्मापित मन्दिर पुराना हो जाने के कारण उसके स्थान पर यह नया बना हो तो आश्चर्य नहीं है।
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