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कारण से देवकुलिकाओं का काम अधिकांश अपूर्ण ही रह गया है। भीमाशाह ने प्रासाद करवाया और इसके ज्ञाती भाई शाह सुन्दर
और गदा ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई यह भी एक अर्थ सूचक बात है, क्या भीमाशाह का प्रतिष्ठा करवाने के पहले ही स्वर्गवास हो गया होगा ? अथवा तो और कोई कारण बना होगा ?
___अर्बुद कल्प" से इतना तो अवश्य ज्ञात होता है कि पन्द्रहवीं शती के आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजी के समय में भीमाशाह के इस मन्दिर का जीर्णोद्धार पूर्ण हो चुका था, चौलुक्य कुमारपाल के बनवाये हुए महावीर के प्रासाद की हकीकत भीमाशाह के इस मन्दिर के बाद दी है, इससे भी मालूम होता है कि भीमाशाह का प्रस्तुत मन्दिर लूणिगवसति की प्रतिष्ठा होने के बाद थोड़े ही समय में बन गया होगा।
४ त्रिभूमिक श्री पार्श्वनाथ का मन्दिर पार्श्वनाथ के इस मन्दिर को आजकल कड़िया अथवा शिलावटों का मन्दिर कहते हैं, यहाँ पर शिलावटों ने संवत् १७६६ के पौष सुदि ३ मंगल के दिन अपने नाम खोदे हैं और पढ़ने वालों को राम राम लिखा है, शायद इसी लेख के ऊपर से यह मन्दिर शिलावटों का होने की मान्यता प्रचलित हो गई हो तो आश्चर्य नहीं, नीचे मण्डप में भी सूत्रधारों के नाम खुदे हुए हैं।
मन्दिर के निचले गर्भगृह में, दूसरी और तीसरी भूमि के गर्भगृहों में चौमुखजी हैं, ज्यादातर प्रतिमाएँ पार्श्वनाथ की खरतर गच्छीय आचार्यो की प्रतिष्ठत की हुई हैं, प्रतिष्ठाकारक संघवी मण्डलिक है, कितनीक प्रतिमाएँ दूसरे गृहस्थों के नाम से प्रतिष्ठित भी हैं, मन्दिर किस का बनवाया हुआ है इसका पता नहीं लगा, फिर भी यह मन्दिर प्रोसवाल संघवी मण्डलिक का बनवाया होने का अनुमान किया जा सकता है, इस मन्दिर में खुदाई का काम भी सामान्य रूप से ठीक है इस मन्दिर की मूर्तियों पर सं. १५१५ का
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