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ष्ठित कर ली गई हैं और इसकी प्रतिष्ठा करनेवाले तपागच्छीय आचार्य श्री लक्ष्मीसागरसूरि थे, इस मन्दिर में इस समय में जो मूलनायक की पित्तल मय प्रतिमा है, इसकी ऊँचाई ४१ इंच परिमाण है और सपरिकर मूर्ति का वजन १०८ मन है, उसके बनवाने वाले गुर्जर मं. सुन्दर और गदा हैं, इस भीमा चैत्य में कतिपय प्रतिमाएँ सं० १५४७ में प्रतिष्ठित भी हैं, इस मन्दिर में १५२५ के फाल्गुन सुदि ७ शनिवार और रोहिणी के दिन आबू पर प्रतिष्ठा हुई थी, उस समय देवड़ा श्री राजधर, सायर, डूंगरसिंह का राज्य था, शा० भीमा चैत्य में गुर्जर श्रीमाल राजमान्य मं. मंडन की भार्या भोली के पुत्र म. सुन्दर और उसके पुत्र मं. गदा इन दोनों ने कुटुम्ब परिवार से परिवृत हो के १०८ मण परिमाण परिकर सहित प्रथम जिनका बिम्ब करवाया था और तपागच्छ के आचार्य श्रीसोमसुन्दर सूरि के पट्टधर श्री मुनिचन्द्रसूरि और जयचन्द्र सूरि इनके पट्टधर श्री रत्नशेखरसूरि और रस्नशेखरसूरि के पट्ट प्रतिष्ठित श्री लक्ष्मीसागर . सूरिजी ने प्रतिष्ठा की थी, प्रतिष्ठा के समय श्री सुधानन्दनसूरि, श्री सोमजयसूरि उपा० जिनसोमगणि प्रमुख परिवार लक्ष्मीसागरसूरि के साथ में था, यह मूर्ति देवा नामक शिल्पी ने बनाई है।
उपर्युक्त "अर्बुद कल्प" सूचित भीमाशाह का प्रासाद आजकल "पित्तनहर अथवा" भीमाशाह का मन्दिर "इस नाम से प्रसिद्ध है, इस जिन मन्दिर को गुर्जर ज्ञातीय शाह भीमा ने बनवाया था, परन्तु इसके निर्माण का समय कहीं भी सूचित नहीं किया, सं. १५२५ में गुर्जर मं. मण्डन के पुत्र मं. सुन्दर और उसके पुत्र गदा नामक गृहस्थों ने इसमें ४१ अंगुल की और १०६ मन की भगवान् ऋषभदेव की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराकर स्थापित की है।
___इस मन्दिर जी के अन्दर जाते दाहिने हाथ की तरफ़ सुविधिनाथ का मन्दिर है, इसके सिवा मुख्य मन्दिर के सन्मुख तथा बायीं तरफ देवकुलिकायें बनी हुई हैं, इस मन्दिर का प्रारम्भ ५२ जिनालय प्रासाद बनवाने के विचार से किया गया था, परन्तु किसी
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