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सच निकलीं, इनकी वंश परम्परा की दो तीन पीढी के बाद ही समाप्ति होने का अनुमान होता है ।
कसौटी का द्वार भी संवत् १३६६ में मुसलमानों के आक्रमण के समय वे उठा ले गये हैं ।
लूणिगवसति में चांदी के पत्र की पादुका जोड़ी एक है । “अर्थ दकल्पानुसार श्री विमलवसति और लुणिग वसति के जीर्णोद्धार”
वि० सं. १३६६ में दोनों मन्दिरों में मुसलमानों ने तोड़फोड़ की थी और मूर्तियां लगभग सब खण्डित कर दी थीं, इनमें विमलवसति का जीर्णोद्धार १३७८ के वर्ष में महणसिंह के पुत्र लल्ल नामक श्रावक और उसके पुत्र वीजड़ ने करवाया था और लूणिग वसति के चैत्य का जीर्णोद्धार श्रीचण्डसिंह के पुत्र श्री पीथड़ ने
करवाया था ।
३ – पित्तलहर अथवा भीमाशाह का चैत्य
अर्बुद कल्पकार कहते हैं - 'तीसरा एक जिन चैत्य शा० भीम ने पहले बनवाया था और उसमें बड़ी सुन्दर पित्तलमय आदिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी, आजकल भीमाशाह के उस चैत्य का जीर्णोद्धार संघ की तरफ से हुआ है ।
भीमाशाह के मन्दिर का जीर्णोद्धार सोमसुन्दरसूरिजी के समय में हो रहा था, ऐसा " कल्प" से सूचित होता है, आजकल इसमें जो प्रतिमायें प्रतिष्ठित की हुई हैं, उनकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १५२५ में होने का लेखों से ज्ञात होता है, इससे प्रमाणित होता है कि विद्यमान मूर्तियाँ जीर्णोद्धार होने के बाद में प्रतिष्ठित की होंगी, अधिकांश मूर्तियों पर गुर्जर ज्ञातीय सुन्दर और गदा नामक गृहस्थों के नाम हैं और इस मन्दिर की देहरियां भी अधिकांश अभी तक बनी नहीं हैं । इससे ज्ञात होता है कि कल्पलेखक के समय में इस मन्दिर के जीर्णोद्धार का काम चलता होगा और बाद में बन्द हो गया है, इससे जितना भाग तैयार हुआ था, उतने में मूर्तियां प्रति
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