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________________ ३२८ का एक पट्ट दक्षिण भीत में खड़ा है, जिसका स्वरूप दर्शन नीचे मुजब है ___अश्वावबोध तीर्थ अथवा तो 'शकुनिकाविहार' का पट्टक विस्तार में ५ फुट १ इंच का है और ऊँचाई में ४ फुट ३ इंच का है, दो टुकड़ों का बना हुआ है, ऊपर का टुकड़ा २ फुट १ इंच की ऊँचाई में है,बीच में ८ इंच की मूर्तिवाला शिखरबद्ध चैत्य है, मूर्ति के दाहिने हाथ की तरफ हाथ जोड़े पुरुष की मूर्ति, उसके आगे फल पात्र लिये और हाथ जोड़े दो भक्त मनुष्य, उनके आगे एक देवी की पीठ पर बैठी मूर्ति के दाहिने हाथ में तलवार, बाएं हाथ में अन्य शस्त्रादि लिये हुए है, उसके बाएं पग की जांघ पर एक बालक बैठा है और ऊपर छत्री सी बनी है, इसके दाहिने आखिर भाग में कोई परिचारक है, तीर्थंकर मूर्ति के बाएँ हाथ पर एक स्त्री की मूर्ति और उसके आगे चरण पादुका और फिर सवार सहित घोड़ा है, तीर्थकर मूर्ति के नीचे उत्तर तरफ होती हुई नदी दक्षिण में मुड़कर समुद्र में मिली है, नदी में मछलियां और ना तथा समुद्र में जलयान और जलचर दिखाए हैं, मूर्ति के नीचे अपने बाएँ हाथ में भी समुद्र ऊपर नदी और दाहिने हाथ की तरफ वृक्ष ऊपर बैठी हुई शकुनिका दृष्टिगोचर होती है, वृक्ष के नीचे से एक पुरुष बाण फेंकता है और शकुनिका घायल होकर गिरती है, दो जैन साधु उसको नमस्कार मन्त्र सुनाते हैं इत्यादि चरित्र के चित्रण पट्ट में किये गए हैं। इस पट्टक पर लेख वगैरह कुछ भी नहीं है, परन्तु "जैन तीर्थगाइड" में श्री शान्तिविजयजी ने वहाँ लेख होने का लिखा है और गाइड में उसकी नकल भी दी है, लेख सं० १३२८ का बताया है उसमें संविग्न-विहारी श्रीचक्रसूरिसन्तानीय श्रीजयसिंह सूरि के शिष्य श्री सोमप्रभसूरि और उनके शिष्य श्रीवर्द्ध मानसूरि द्वारा पट्ट प्रतिष्ठित होने का लिखा है, कुछ भी हो, पर अश्वावबोध तीर्थ का प्रस्तुत पट्ट यह तेजपाल के समय का नहीं है, उसके बाद में प्रतिष्ठित किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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