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(१३ महं श्री मालदेव २१४ महं श्री लीलादेवी (१५ महं श्री प्रतापदेवी (१६ महं श्रीवस्तुपाल "सूत्र वरसाकारित" २१७ महं श्रीललितादेवी (१८ महं श्री विजलदेवी ६१६ महं श्रीतेजपाल "सूत्रवरसा कारित"
२० महं श्रीअनुपमादेवी (२१ महं श्रीजितसी
२२ महं श्रीजेतलदे 1 २३ महं श्रीजंमणदे (२४ महं श्रीरूपादे ( २५ महं श्रीसूहड सिंह १२६ महं श्रीसूहडांदे
( २७ महं श्रीसलपणादे ये २७ ही मूर्तियां जीर्णोद्धार कालीन होनी चाहिए, हाथी वस्तुपाल तेजपाल के वक्त के हैं, मगर उनके ऊपर बिठायी हुई मूर्तियाँ नहीं हैं, तमाम हाथियों के पूंछ और कान नए लगाए गए हैं, कितनेक की सूंड भी नवीन है, पिछली मूर्तियां बोदकी होने की वजह यह है कि वे अखंडित हैं, दूसरा उनके नीचे खुदे हुए लेख नवीन होने चाहिए, क्योंकि तेजपाल कालीन लेखों को लिपि से यह लिपि नहीं मिलती, हाथियों पर की लिपि से भी यह लिपि जुदी पड़ती है इससे ये मूर्तियां पीछे की हैं ।
लूणिगवसति में रहे हुए पट्टकादि
लूणिग वसति की देहरी नं० ६ में दक्षिण भीत में एक सुन्दर चतुर्विंशति पट्ट लगा हुआ है, देहरी नं० १२वीं में भी सामने १ चतुर्विंशतिपट्ट लगा हुआ है, देहरी नं० १६ में अश्वावबोध तीर्थ
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