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३२५ (८) संवत १२३७ प्रासाढ सुदी ८ बुध दिने पउतार ठ. जगदेवस्य । (६) , १२३७ प्रासाढ सुदी ८ बुध दिने महामात्य श्री धनपालस्य (१०) इस हाथी का लेख भाग टूट गया है ।
ऊपर के लेखों में विमल के परदादे से लेकर उनके बड़े भाई नेढ की ६ छट्ठवीं पीढ़ी तक के नाम हैं मानों नेढ मन्त्री की वंशावली खडी हैं।
विमल वसहि में धातु की चौबीसी १, पंचतीथियां २, छोटीछूटी प्रतिमायें २, चांदी के सिद्धचक्र २, अष्ट मंगल २, पीतल के सिद्धचक्र २, धातुमयी प्रतिमायें २, भूमिगृह में से निकली हुई छूटी प्रतिमा १, फुट १ परिमाण, पाँचतीथियां ६, अंबिका १ फुट १ आसरे।
(२) लूणिगवसति यह मन्दिर राणा वीरधवल के मन्त्री तेजपाल ने बनवाया है, इसके मूल मन्दिर की प्रतिष्ठा विक्रम सं.१२८७ के वर्ष में हुई थी। आसपास की देहरियों पर मन्त्री वस्तुपाल, तेजपाल के कुटुम्बी और सम्बन्धियों के नाम खुदे हुए हैं, दो गोखले देराणी जेठाणी के कहलाते हैं वे इसी मन्दिर में हैं और गूढ़मण्डप के द्वार के बाईं ओर दाहिनी तरफ बने हुए हैं, लोगों का खयाल है कि इनमें से एक वस्तुपाल की स्त्री ने, दूसरा तेजपाल की स्त्री ने बनवाया है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है, ये दोनों गोखडे मन्त्री तेजपाल ने अपनी "सुहडा देवी" नामक स्त्री के नाम से बनवाए हैं और इनकी प्रतिष्ठा संवत १२९७ में हुई है।
इस मन्दिर के पिछले भाग में हस्तिशाला है, जिसमें सर्व प्रथम आचार्य उदयप्रभ और इनके बाद आचार्य विजयसेन की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं मूर्तियां पिछले भाग की शाला के उत्तर विभाग में हैं, इनके बाद दक्षिण की तरफ एक के बाद दूसरा इस प्रकार से हाथी खडे किये हुए हैं और हाथियों के पीछे वस्तुपाल तेजपाल के दादे के दादे से लेकर इनके पुत्रों तक की सस्त्रीक मूर्तियां खडी हैं, परिक्रमा
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