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________________ ३२४ विमलवसति की हस्तिशाला हस्तिज्ञाला में सम्मुख विमल शाह का घोडा है, ऊपर छत्रधर सहित मूर्ति है, घोडा और विमल मूर्ति का गर्दन तक का भाग चूने ईंटों का बना मालूम होता है, गर्दन ऊपर का मुख भाग मारबल पत्थर का है, कहते हैं पहिले घोड़ा और सवार दोनों पत्थर के थे, मगर बाद में मुसलमानों ने तोड़ दिये, मौजूदा घोड़ा बाद का है विमल का मुख असल प्राचीन मूर्ति का मालूम होता है । समवसरण में घोड़े के पीछे चौमुखजी हैं । समवसरण के पीछे एक दूसरे के पीछे खड़े दो हाथी हैं । प्रवेश करते दाहिने हाथ पर एक दूसरे के पीछे ४ हाथी हैं और बायीं तरफ भी इसी तरह ४ हाथी हैं । दाहिनी तरफ के शुरू के ३, बायीं तरफ के शुरू के ३ और बिचली पंक्ति का शुरू का १ ये ७ हाथी सं. १२०४ की साल में स्थापित हुए मालूम होते हैं और तीनों पंक्तियों के आखिरी ३ हाथी सं. १२३७ की साल में स्थापित हुए हैं, आखिरी १ हाथी का लेखवाला सूंड के नीचे का भाग टूट गया है, बाकी सब हाथियों के नीचे के पत्थर पर सामने लेख खुदे हुए हैं, जिनसे इसका पता चलता है कि किस हाथी पर कौन बैठा है, कितनेक हाथियों पर अभी तक महावत और किसी अम्बाडी पर गृहस्थों की पूजा सामग्री लिये मूर्तियां बैठी हैं, परन्तु आश्चर्य यह है कि अम्बाडी में बैठी हुई मूर्तियां मनुष्य मूर्तियां होने पर भी चार हाथ वाली हैं । क्रमशः हाथियों के लेख नीचे मुजब हैं (१) संवत् १२०४ फागुण सुदि १० शनौ दिने महामात्य श्री नीनूकस्य । (२) (३) (४) (५) (६) (61) 11 33 }) 31 11 11 Jain Education International 22 "" 1= 11 11 13 17 " 33 11 11 34 " 13 "} 3) 19 11 11 17 12 " " 11 "" "} 31 73 13 39 " 27 13 "1 33 For Private & Personal Use Only लहरकस्य । वीरकस्य | वेदकस्य | धवलकस्य । श्रानन्दकस्य | पृथ्वीपालस्य । www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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