SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० विमल वसति में देहरियों का निर्माण संवत् १२४५ तक होता रहा है और प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा अंजन शलाकाएँ वि. सं. १२००, १२०१, १२०२, १२१२, १२४५, १२८६, १३०६, १३७८, १३६४ इन वर्षों में होने के लेख मिलते हैं। मुसलमानों द्वारा मूर्तियों का नुकसान होने के बाद शाह लल्ल और वीजड द्वारा सं. १३७८ में जीर्णोद्धार होकर फिर मूर्तियां प्रतिष्ठित की गई थीं, इस जीर्णोद्धार सम्बन्धी एक बड़ी प्रशस्ति देहरो नं. १६ और १७ के बीच में खोदी हुई है, इस प्रशस्ति में तत्कालीन राजाओं की वंश परंपरा और जीर्णोद्धार कराने वाले सेठ लल्ल और वीजड़ की वंशपरंपरा का वर्णन दिया है, इस जीर्णोद्धार की प्रतिष्ठा धर्मसूरि के पट्टधर धर्मघोष सूरि और उनके पट्टधर प्राचार्य अमरप्रभ सूरि के उत्तराधिकारी प्राचार्य श्री ज्ञानचन्द्रसूरि ने की थी, जीर्णोद्धार की यह प्रशस्ति ४२ काव्यों में पूरी हुई है, इस जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा का समय निम्नोद्धृत पद्य में सूचित किया है "वसु मुनि-गुण शशि वर्षे, ज्येष्ठ नवमिसोमयुतदिवसे । श्रीज्ञानचन्द्रगरुणा, प्रतिष्ठितोऽबु'दगिरौ ऋषभः ॥४२॥ अर्थात्-१३७८ के वर्ष में ज्येष्ठ शुक्ल नवमी और सोमवार के दिन श्री ज्ञानचन्द्र गुरु ने आबू पर्वत पर ऋषभदेव को प्रतिष्ठित किया। ___उपर्युक्त प्रशस्ति के अनुसार जीर्णोद्धार की प्रतिष्ठा कराने वाले श्री ज्ञानचन्द्रसूरि थे, यह तो निश्चित है, फिर भी उसी वर्ष में कतिपय देव कुलिकाओं में जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा कराने वाले अन्यान्य आचार्यों के नाम भी उपलब्ध होते हैं, जैसे देव कुलिका नं. ४६ में श्री महेन्द्रसूरिजी द्वारा अजितनाथ जी के बिम्ब की प्रतिष्ठा हुई थी, इस प्रतिष्ठा का वर्ष तो १३७८ ही था, परन्तु तिथि वैशाख सुदि ६ थी इतना अन्तर जरूर था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy