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________________ ३१७ ही जगह भरत बाहुबलि की युद्ध करती मूर्तियां बताई है, नीचे उनके नाम खुदे हुए हैं और ऊपर दोनों के बीच में युद्ध का नाम खुदा है) 'काउसग्गे स्थिरश्च बाहुबलि" (काउसग्गिया नीचे) "संजातकेवलज्ञानो बाहुबलि' (एक पग उठाई हुई मूर्ति पर) "वतिनी बांभी तथा सुंदरी' (साध्वियों की मूर्ति पर)।" २ देहरी नं० ६ के बाहर कार बाह्य वलय में बहुत करके श्री ऋषभदेव के पूर्व भवों का चित्र समूह है, मध्यवलय में माता शय्या में सोती हुई १४ स्वप्न देखती है, हाथी वगैरह १४ स्वप्न चित्र उसके पीछे बताये हैं, उनके पीछे जन्म और इन्द्र तीर्थंकर को गोद में लिए मेरु पर्वत पर जन्माभिषेक करता है बाद में दीक्षा का वर घोडा और केशलोच बताया है, पीछे किसी राजा का सिंहासन है और फिर कायोत्सर्ग मुद्रा खडी है, अभ्यंतर वलय में केवल ज्ञान और समवतरण बताया है. पर समवरण स्थित मूर्ति चतुर्मुख न होकर एक मुख है। ३ देहरी नं० १० के बाहर नेमिनाथ की जल क्रीडा, नेमिनाथ और कृष्ण की वल परीक्षा वगैरह, सर्व के बीच में सरोवर और कृष्ण की स्त्रियों के साथ जल क्रीडा करते हुए कृष्ण को और नेमिकुमार को बताया है, मध्यवलय में नेमि आयुध शाला में जा कर शंख फूंकते हैं, कृष्ण और बलदेवजी दोनों चिंता पूर्वक सिंहासन पर बेठे विचार कर रहे हैं, नेमि, कृष्ण का हाथ मोड़ते हैं और कृष्ण नेमि का हाथ पकड़ कर लटक रहे हैं, हाथ नहीं मुड़ता, तीसरे वलय में बरात लेकर जाते हैं, पशु शाला देखकर रथ लौटाते हैं, गिरनार पर दीक्षा लेते हैं, केवल ज्ञान होने के बाद राजीमती दीक्षा लेती है. यहाँ "चोरी" और उत्सववाद्य विगैरह बताये हैं। ४ देहरी नं० १२ की चौकी में शान्तिनाथ का चरित्र है। ५ देहरी नं० २६ के बाहर कृष्ण चरित्र है, पूर्व तरफ कृष्ण अपने मित्रों के साथ गिल्ली डन्डे खेलते हैं, बीच में कालेय नाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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