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३१५ घुडदौड की फेटें हो रही हैं, इत्यादि गणनातीत भाव चित्रों में हूबहू दिखाये गये हैं, इनमें जो वास्तविक खूबियां हैं वे देखते ही बनती हैं, इन सब भाव वाहक चित्रों का यथार्थ वर्णन इस लेखनी की शक्ति के बाहर है तो भी दर्शक और पाठकों के विनोदार्थ कुछ भावों का स्पष्टी करण करते हैं, जिससे मालूम हो जायगा कि आबू के जैनमन्दिरों की नक्कासी में क्या क्या भाव समाये हुए हैं। ____ आदिनाथ के मन्दिर में प्रवेश कर ५-७ कदम चलकर ऊपर ही खडे रहकर जगती और रंग मंडप के बिचली चौकी में ऊपर नजर करिये, भरत बाहुबलि की लडाइयों का चित्र दिखाई देगा, पहले हो तुम्हारे दाहिने हाथ की तरफ भरत चक्री की राजधानी "विनीता" नगरी और बाईं तरफ बाहुबली की राजधानी "तक्षशिला' दिखाई देगी, मकानात, मनुष्य, हाथी, घोडे, कोट-वगैरह सब आकार दक्षिणी की आधी चौकी तक्षशिला की हद समझिये, विनीता की हद में क्रमश: भरत सम्बन्धी घटनाओं के चित्र हैं, तब तक्षशिला की हद में बाहुबलि सम्बन्धी पात्र चित्रित हैं, दोनों नगरियों से लश्कर की चढाइयां होती हैं और तक्षशिला की हद में घमासान युद्ध होता है, अनेक मनुष्यों का संहार होने के बाद इन्द्र की सलाह से दोनों भाइयों के बीच छः प्रकार के द्वंद्व युद्ध होते हैं, दृष्टियुद्ध, वाग्युद्ध, बाहुयुद्ध, मुष्टियुद्ध, दंडयुद्ध, और चक्रयुद्ध, भगवन्त आदिनाथ का समवसरण होता है, भरतादि सर्वं लोग वंदन और उपदेश सुनने को आते हैं, ब्राह्मी, सुन्दरी दीक्षा लेने को भरत को विनती करती हैं और आखिर में वे दोनों साध्वियां होती हैं। भगवान् ऋषभदेव के संकेत से दोनों बहिन कायोत्सर्ग-स्थित बाहुबलि के पास आती हैं और उसको ऋषभदेव का संकेत सुनाती हैं, इससे बाहुबलि चेतते हैं और एक पग उठाते हैं, उसी वक्त उन्हें केवलज्ञान होता है, भरत भी अंगुलीयक रहित अंगुली देखकर भावनारुढ हो केवलज्ञान पाते हैं, सानिध्य देवता उन्हें साधु का वेष देती है, भरत साधु वेष धारण कर पृथ्वी पर विचरने लगते हैं, इत्यादि भरत
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