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________________ श्रावू देलवाड़ा के जैन मन्दिर (१) विमल वसतिआबू के जैन मन्दिरों में जैसा नक्कासी आदि में कारीगरी का काम हुआ है, वैसा दुनिया भर में शायद ही मिलेगा, "विमल वसति" यह आवु पर के विद्यमान तमाम जैन मन्दिरों में पुराना है, गुजरात के महाराजा प्रथम भीमदेव के सेनापति शाह विमल ने यह मन्दिर बनवाया और विक्रम संवत् १०८८ में इसकी प्रतिष्ठा करवाई यह बात ऊपर कही जा चुकी है। "विमलवसति" के मण्डप आदि में नक्कासी का काम अत्युत्तम प्रकार का हुआ है, उसमें केवल बेल पत्तियां ही नहीं, किन्तु अनेक 'जैन' और 'हिन्दु' देवताओं के चित्र और उनके चरित्र-चित्रित किये नजर आते हैं, कहीं तीर्थकरों के चरित्र तो कहीं कृष्णावतार और नृसिंहावतार के पराक्रम, कहीं षोडश विद्यादेवियां अपने अपने वाहन आयुधों के साथ खड़ी हैं तो कहीं लक्ष्मी और सरस्वती अपने चिन्हों के साथ विराजमान हैं, कहीं पद्म सरोवर है, तो कहीं मान सरोवर हंसमाला के साथ दिखाई देता है, कहीं षोडश भुजा देवी है तो कहीं विंशति भुजा है, कहीं तीर्थंकरों के समवसरण हैं तो कहीं उनका स्नानमहोत्सव हैं, कहीं राजसभा है तो कहीं नगर निवेश हैं, कहीं तापस तपस्यालीन हैं तो कहीं आचार्य व्याख्यान दे रहे हैं, कहीं मुनिजन तिर्यंचों को धर्म उपदेश देकर विनयनम्र बना रहे हैं तो कहीं साधु साध्वो के संघाटक भगवन्त के दर्शनों को जा रहे हैं, कहीं कृष्ण जन्म और गोकुल गमन हैं, तो कहीं नेमिनाथ का विवाह महोत्सव, कहीं लडाई हो रही है तो कहीं नाटक हो रहा है, कहीं चतुरंग सेना 'चल' रही है तो कहीं नदी और समुद्रों में जलयानों की सफर हो रही है, कहीं हाथियों की घटायें हैं, तो कहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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