SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१३ चैत्येऽत्र लूणिगवसत्यभिधानके त्रिपंचाशता समधिका द्रविणस्य लक्षः। कोटीविवेच सचिवस्त्रिगुणाश्चतस्त्रः, श्रीमानसौ विजयतेऽर्वादशैलराज ॥१६॥ यह श्री नेमीनाथ का मन्दिर मन्त्री श्री वस्तुपाल ने सं १२८८ में बनाकर इसमें कसौटी के पत्थर का सुन्दर नेमिनाथ का बिम्ब प्रतिष्ठित किया, इस लूणिगवसति नामक चैत्य के निर्माण में मन्त्री ने १२ करोड ५३ लाख रुपया खर्च किया, ऐसा पर्वतराज अबुर्द जयवन्त है ॥ १५॥१६॥ __“अबुर्द कल्प" में किये गये नेमिनाथ के मन्दिर की उत्तर दिशा में प्रद्युम्न, शाम्ब और रथनेमि अवतार नामक तीर्थों को देखकर दर्शक गिरनार तीर्थ को याद करते हैं । इस उल्लेख से जाना जाता है कि लूणिगवसति से उत्तर की टेकरी पर उक्त तीर्थो की पूर्वकाल में स्थापनायें होंगी, अब यथोक्त स्थापनायें नहीं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy