SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अब हम अपने मुख्य विषय पर आते हैं आबू तीर्थ की प्राचीनता वर्तमान में आबू के शिलालेखों और अन्यान्य ग्रन्थों के वर्णनानुसार आबू तीर्थ की स्थापना विक्रम की ग्यारहवीं शती के उत्तराद्ध में हुई मानी जाती है, परन्तु कतिपय प्राचीन स्तोत्रों में आबू तीर्थ की स्थापना विक्रम की दूसरी शती में होने के उल्लेख भी मिलते हैं, तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजी अपने अर्बुद कल्प में लिखते हैं . नागेन्द्र-चन्द्र-प्रमुखैः प्रथितप्रतिष्ठः, श्रीनाभिसम्भवजिनाधिपतिर्मदीयम् । सौवर्णमौलिरिव मौलिमलंकरोति, श्रीमानसौ विजयतेऽर्वादशैलराजः ॥१०॥ अर्थात्-नागेन्द्र, चन्द्र निर्वृति प्रमुख आचार्यों द्वारा जिसकी प्रतिष्ठा हुई है, श्री नाभिराजा के पुत्र श्री आदि जिन जिसके शिखर को सुवर्णमुकुट की तरह सुशोभित कर रहे हैं, ऐसा श्रीमान् अर्बुद पर्वतराज जगत् में जयवन्त है ॥१०॥ ऊपर के पद्य से इतना तो निश्चित होता है कि विक्रम की पन्द्रहवीं शती के पूर्वकाल से ही आबू पर नागेन्द्र, चन्द्रादि द्वारा आदि जिन की प्रतिष्ठा होने की बातें चली आती थीं। उक्त अर्बुद कल्प के लेखक प्राचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजी के लेखानुसार प्राग्वाट वंशीय मन्त्रि मुकुट श्री विमल मन्त्री ने अम्बा देवी की आराधना कर और गोमुख यक्ष की चम्पक वृक्ष के निकट प्रकट हुई मूर्ति देखकर उसी प्रदेश की भूमि जैन मन्दिर के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy