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का तेजी पर व्यापार करने की आज्ञा देकर बम्बई भेजा, बम्बई जाकर उसने १०००० रुपया रुई की तेजी के लगाये और १२५ चांदी की पायें खरीदीं, उस समय चांदी का भाव ५७ । । ) के लगभग था, पर खरीदी करने के बाद भाव गिरता गया और ४६ ऊपर जाकर रुका, व्यापारी घबडाया और शान्ति विजयजी को चिट्ठियों पर चिट्ठियां, तारों पर तार देने लगा, परन्तु योगीजी की तरफ से सिर्फ एक ही उत्तर गया कि हमारी तबीयत ठीक नहीं है, हमें मत लिखो । बेचारे व्यापारी ने आखिर दलालों की सलाह लेकर अपना व्यापार निभाया और तीन लाख की आशा में गांठ के तीन लाख गंवा दिए । यह तो एक उदाहरण प्रस्तुत किया है, बाकी इसी तरह के १५ आदमियों के उदाहरण मुझे ज्ञात हैं, जो योगीजी तथा आपके मुंजावरों के चकमे में आकर लाखों की पूँजी गंवाकर दिवालिये बने हैं |
योगी शान्ति विजयजी अब इस दुनिया में नहीं है, उनकी जीवित अवस्था में आबू और आसपास के स्थानों में उनकी पूछ-ताछ थी और इसी कारण से उनके सम्बन्ध की कुछ बातें ऊपर लिखी गई हैं ।
शान्तिविजयजी की प्रांखों में और उनके वचन में कुछ आकर्षण था, जो कोई श्रद्धालु बनकर उनके पास जाता और चार छः दिन ठहरता तो उसके मन पर इतना असर अवश्य पड जाता था कि फिर वह आने की भावना के साथ वहाँ से जाता, इस शक्ति का उपयोग अपना व्यक्तित्व प्रसिद्ध करने के बजाय धार्मिक भावना की तरफ लोगों को खींचने में करते तो जैन समाज के लिए विशेष लाभदायक परिणाम आ सकता था ।
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