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________________ ३०७ और बाद में वह पूरा वक्तव्य आप के उपदेश के नाम से अथवा अन्य किसी हेडिंग के नीचे वर्तमान पत्रों में छप जाता है। आप बहुत साधारण रूप से ज्योतिष की बातें जानते हैं, परन्तु बात करने की खूबी से आप अपना निर्वाह कर लेते हैं, मुझे स्वयं अनुभव तो नहीं पर जानकार कहते हैं कि आप का ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान बिल्कुल कच्चा है, इस वास्ते आप अपने पिट्ठ किसी ज्योतिषी से पूछ कर वर्ष भर के मौहूर्तिक दिन निश्चित कर लेते हैं, और जब मुहूर्त पूछने वाले आते हैं तो उनके नाम से चन्द्र का आनूकूल्य देखकर दिन बता देते हैं। कभी कभी मुहूर्त के सम्बन्ध में योगीजी उटपटांग बातें भी कह डालते हैं, करीब ५ वर्ष पहले की बात है, एक गांव में जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा होने की थी, उसका मुहूर्त धनारी के श्री पूज्य विजयमहेन्द्रसूरिजी ने दिया था, दो तोन अन्य ज्योतिषियों ने भी उनको सही बताया था, योगीजी ने स्वयं भी उसे पास किया था और मुहूर्त पूछने वालों से गुडधाने बंटवाये थे और "प्रतिष्ठा पर मैं आऊंगा' यह जाहिर किया था, परन्तु गांव के संघ ने योगीजी को न बुलाकर अन्य साधुओं के हाथ से प्रतिष्ठा कराना निश्चत किया, जब योगीजी को उनके शागिर्दो द्वारा यह समाचार पहुंचे तो उन्होंने किसी भी प्रतिष्ठा को न होने देने की ठानी, प्रतिष्ठा वाले गाँव के तथा उसके पास वाले गांव के दो तीन आदमी उनके पास गये, तब आपने कहा "तुम्हारे यहां जो प्रतिष्ठा का मुहूर्त निश्चय किया है वह ठीक नहीं है, अगर इस मुहूर्त में प्रतिष्ठा करवाई तो लापसी करने वाला मर जायगा", इस प्रकार जबानी भय बताकर ही संतोष नहीं किया, आपने उस गांव के संघ के नाम एक रजिस्टर्ड पत्र दिया, जिसमें लिखा कि- "तुमने जिस मुहूर्त में प्रतिष्ठा कराना निश्चित किया है, वह मुहूर्त ठीक नहीं है, क्योंकि उन दिनों में बुध का उदय होता है, हमने ठीक समझकर सूचना की है आगे तुम्हारी मरजी की बात है। यदि इस मुहूर्त में प्रतिष्ठा कराओगे तो पछतावा होगा।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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