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शक्ति से सभी भाषायें जानते हैं, इत्यादि बातें होती अवश्य हैं, पर उनमें सत्यता बिल्कुल नहीं, इनको किसी भी भाषा का ठीक ज्ञान नहीं है, चिट्ठी पत्री तक लिखना नहीं जानते, हां बोलने में बोलचाल की बहुत मामूली हिन्दी बोल लेते हैं, पर वह भी शुद्ध नहीं । इंग्लिश भाषा के कुछ वाक्य और शब्द भी बोल लेते हैं, क्योंकि इंग्लिश सेल्फ टीचर का अवलोकन किया करते हैं, फिर भी इंग्लिश बोलना टेढी खीर है, जब कभी अंग्रेजी वाक्य या शब्द बोलते हैं, बहुधा अशुद्ध बोलते हैं, कभी कभी संस्कृत वाक्य भी संस्कृत भाषी के साथ बोलते हैं, परन्तु शुद्ध नहीं, इंग्लिश पत्र पढने के बारे में अहमदाबाद के एक विद्वान् ने हमें एक बड़े मार्के की बात कही थी, उन्होंने कहा - "हमारा एक मित्र जो ग्रेज्युएट था, शान्तिविजयजी के पास गया तब उन्होंने अमेरिकन मिस पीम का पत्र पढकर उसका अर्थ कहा और पूछा- क्या इसका यही मतलब है, उसने कहा- हाँ आपने जो समझा वही पत्र का भाव है, हमारा मित्र इस प्रसंग से बहुत प्रभावित हुआ और कहने लगा- शान्ति विजयजी अच्छी इंग्लिश समझ सकते हैं, दूसरे दिन हमारी मंडली का दूसरा ग्रेज्युएट योगीजी के पास गया तो उसे भी वही पत्र पढ सुनाया, जब यह बात हमारे पहले मित्र ने सुनी तो उसे कुछ संदेह हुआ, कहीं वह पत्र उन्होंने रट तो नहीं लिया ? तीसरे दिन जब अन्य इंग्लिश मैन उनके पास गया तब भी वही पत्र पढा और अर्थ सुनाया, इससे हमारे मन में यह बात बैठ गई कि आपने यह पत्र किसी शागिर्द के पास पढकर र लिया है और अब आप नये नये आदमियों को सुनाकर चकित कर रहे हैं", इसी तरह आप कभी कभी कोई बात किसी से पूछ लेते हैं, या लिखवा लेते हैं और फिर प्रसंग पर सूत्र का नाम और अध्ययन का पृष्ठ तक बताकर उसका साक्ष्य देते हैं, जिससे सामान्य जनता पर बहुत प्रभाव पडता है, वे समझते हैं, महाराज जैन सूत्र पढे हुए हैं, अथवा योगबल से सूत्रों की बातें कह देते हैं, वास्तव में आप जिन जिन प्रसंगों पर कुछ चाहते हैं उन पर पहले किसी से लिखवा लेते हैं, फिर आप उसका सारांश अपनी भाषा में कह देते हैं
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