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________________ ३०४ विहारयोगिशान्तिविजयजी पहले प्राय: जैन श्रमणों की तरह पादविहार करते थे और एक जगह अधिक नहीं रहते थे, पर अब आप जहां चातुर्मास्य करते हैं, वहां दो तीन वर्ष तक जमे रहते हैं और जब वहां से दूसरे दूर स्थान जाते हैं, पालकी में बैठते हैं, श्री केसरियाजी तीर्थ के झगड़े के सम्बन्ध में जब मेवाड़ गये, मांडोली की प्रतिष्ठा पर गये तब मियाने में बैठकर गये थे और वापस अनादरे जाते समय भी आपने मियाने का इस्तेमाल किया था, अनादरे जाते समय पाडीव से विहार कर शाम तक सिद्धरथ पहुंचे, वहाँ से अनादरा ६ कोस दूर था, लोग सोच रहे थे १ दिन बीच में है, योगीराजजी कैसे पहुंचेंगे और प्रतिष्ठा करेंगे ? सिद्धरथ में लोगों को अपने पास से हटाकर योगिराज ने डोली में बैठकर रातभर में मार्ग तै कर लिया, षष्ठी को प्रातःकाल होते ही सारे अनादरे में योगीजी के आ पहुंचने के समाचार फैल गये थे। आप दिन भर बसति में रहते हैं और रात को गुफा वगैरा में चले जाते हैं जो बहुधा गांव के बाहर होते हैं । परन्तु वहां भी आपके विशिष्ट भक्त भक्तानियाँ पहुंच जाती हैं, रात को एकान्त स्थान में स्त्रियों का जाना आना कभी कभी चर्चास्पद बन जाता है, परन्तु योगीजी के मन पर इस मनहूस दुनियां की बातों का कोई असर नहीं होता। योगीजी के आश्रमों की बनावटयोगी श्री शान्ति विजयजी के आश्रम स्थानों की बनावट खास प्रकार की होती है, हमने इनके जितने भी आश्रम देखे सभी रहस्यपूर्ण दो द्वार और दो मंजिल वाले देखे, एक द्वार तो सर्व सामान्य रूप से मकान के सामने बना रहता है, जहां से दर्शनार्थी गण प्रवेश निर्गमन करते हैं, दूसरा द्वार प्रायः दूसरी मंजिल पर जाने के लिए बायें दाहिने रहता है, वहां चढने की सीढी के एक भुज पर लंबी पतली दीवार खींच ली जाती है, जिससे उस द्वार से चढता उतरता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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