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________________ ३०३ इस उपदेश की गहराई कितनी होगी यह कहना कठिन है । आपके भक्त लोगों के बर्ताव से तो उपदेश का थोथापन कई बार प्रकट हो चुका है । आपके विरुद्ध बोलने वालों को पुलिस के जरिये हटाने और न मानने पर गिरफ्तार करवा कर सजा दिलवाने के प्रसंग तक सुनने में आये हैं। तात्पर्य यह है कि अपनी प्रसिद्धि के बाधक मनुष्य कंटकों को मार्ग में से उखाड़ फेंकने में आप कभी प्रमाद नहीं करते, परिणाम इसका वही होता है जो होना चाहिए । योगीजी का आहार शान्तिविजयजी के आहार के सम्बन्ध में साधारण जनता बहुत अंधेरे में है, कोई कहता है-वे केवल फलाहार पर रहते हैं, किसी की समझ है कि वे केवल दुग्धपान पर रहते हैं, तब कोई कोई तो यहां तक कह डालते है कि वे केवल छांस पर गुजरते हैं, परन्तु जहां तक हमें ज्ञात हुआ है उक्त सब बातें गल्त हैं, सच बात यह है कि आपकी मुख्य खुराक दूध और फल है, दूध में बकरी का दूध और फल में संतरा मुख्य है। दो वर्ष पहले जब आप उम्मेदपुर की प्रतिष्ठा पर गये थे और वहां से पादरली, तखतगढ़, बांकली, खीवानदी, सुमेरपुर, शिवगंज विगैरह गांवों में होकर अनादरे गये थे, आपके साथ चलने वाले भक्तों ने चार बकरियां साथ में रखी थीं, उनका जो दूध निकलता उसमें १ तोला ब्राह्मी चूर्ण डाल कर वह उबाला जाता और ठंडा होने पर छानकर योगीजी को दिया जाता था, इसके उपरान्त भक्तजन अपना अपना तैयार भोजन थालों में लेकर आपके पास उपस्थित होते हैं और आप उसमें से अपने लिये जो जरूरी समझते हैं, ग्रहण कर लेते हैं, परन्तु अन्तिम परिपाटी आजकल कुछ शिथिल सी पड़ गई है, आजकल आपके पास कोई न कोई साधु हाजिर रहा करता है जो बहुधा भोजन ला देता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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