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आपने यह अवश्य कहा था कि मैं हमेशा प्रतिलेखना करता हूं, परन्तु हमें इस बात पर विश्वास नहीं आया, क्योंकि इनके चिर परिचित मनुष्य इस बात का समर्थन नहीं करते
भक्तजनों के सिर पर वासक्षेप करना यह जैन श्रमणों का आचार है, पर स्त्रियों और लड़कियों के सिर पर हाथ रखना जैन मुनियों का आचार नहीं, योगीजी पुरुषों और लड़कों के उपरान्त भक्त स्त्रियों और लड़कियों के सिर पर भी अपना वरद हाथ रखते हैं, इसके अतिरिक्त रुग्ण स्त्रियों के रोगपीड़ित अंगों पर भी आप अपना हाथ फिराते हैं ।
सिद्धान्त और उपदेश
योगी महाशय के विचार किसी एक ही सिद्धान्त पर अवलंबित नहीं है, जैनों को वे 'ॐ अर्ह नमः' के जाप का उपदेश करते हैं तब जैनेतर व्यक्तियों को केवल 'ॐ नमः जपने का उपदेश देते हैं । भक्तों को मालाएँ पकड़ाते हैं और कम से कम एक घंटा और अधिक से अधिक यथा शक्ति मौन रखने का उपदेश करते हैं । इनके पास जो अपनी इच्छा से सामायिक करने का नियम लेता है उसे भी घंटा भर मौन में रहकर सामायिक पूरा करने को कहते हैं, इनके यहाँ ६० मिनिट से कम का सामायिक नहीं है । वस्तुतः ये सामायिक प्रतिक्रमण, देवपूजा या देवदर्शन का उपदेश नहीं देते और न इनमें से किसी क्रिया का विरोध ही करते । इनके उपदेश का विषय ध्यान, मौन और जाप हैं । गौण रूप से अहिंसा और मांस मदिरा के त्याग का भी उपदेश करते हैं । इसके उपरान्त आप भक्तों को प्रतिवर्ष दर्शनार्थ आने का भी नियम कराते हैं, ऐसे कई मनुष्य हमें मिले हैं, जिनके वर्ष भर में एक, दो बार शान्ति विजयजी के पास जाने का नियम है ।
आप अपना सिद्धान्त विश्व प्रेम बताते हैं, आपका कहना है'सबके ऊपर प्रेम रक्खो, किसी की निन्दा या बुराई न करो, आपके
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