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मनुष्य हुक्म बिना गया और रास्ता भूलकर जंगल में भटक पड़ा और लू लगकर मर गया ।" ऐसी ऐसी अनेक गल्त नजीरियां देकर मुंजावर लोग वातावरण ऐसा बनाये रखते हैं कि कमजोर दिल वालों को वहां से हुक्म के बिना जाना कठिन हो जाता है । पहर दो पहर ठहरने का विचार करके जाने वाले मनुष्य हफ्तों तक वहां से निकलने नहीं पाते । " उनसे पूछा जाय कि आप जल्दी लौटने का कहते थे और अब तक यहीं हैं ! तो उत्तर यहो मिलेगा कि गुरुदेव का हुक्म नहीं मिलता । छः छः महिनों से जो साध्वियाँ यहां बैठी हुई हैं, उनसे पूछा गया कि तुमको प्राये तो बहुत दिन हो गये हैं ? उत्तर मिला हां, क्योंकि गुरुदेव की विहार के लिए श्राज्ञा नहीं मिलती ।"
ऊपर की सब बातें ठीक हैं, इनमें सन्देह की गुन्जाइश नहीं, फिर भी शान्तिविजयजी कम होशियार आदमी नहीं हैं, ये सभी को सदाकाल रुकने को भी नहीं कहते, सामान्य रूप से सबको ठहरने के लिए कहने की इनकी सामान्य आदत है, पर जब ये जान लेते हैं कि यह मनुष्य अपने प्रभाव नीचे नहीं है और रोकने पर भी नहीं रुकेगा, उसे रोकने का आग्रह नहीं करते, आशीर्वाद और जाने का हुक्म जल्दी दे देते हैं । इसके विपरीत जिन मनुष्यों पर पूरा या थोड़ा बहुत भी इनका प्रभाव पड़ जाता है, उनको जाने के लिए हुक्म देना इनकी मरजी पर रहता है, मैं ऐसे कई मनुष्यों को जानता हूं, जो इनके पास वर्षों तक रह आये हैं, इनमें से अधिकांश धनार्थी थे, जिन्होंने किसी भी अंश तक अपनी इच्छा सफल होने पर ही इनका पीछा छोड़ा है ।
जन समवाय बनाये रखने का प्रयोजन
भक्तों को जाने के लिए जल्दी रजा न देने के कारणों की खोज में मैंने जो कुछ पाया उसका सार यह है - एक तो इनको धूम धाम से अधिक प्रेम है, इस प्रसिद्ध जीवन के पहले भी ये जिन जिन गाँवड़ों में जाते श्रावकों को पूजाओं और उत्सवों के लिए
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