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आसन जमाया, यद्यपि खटमलों से छुटकारा मिल गया पर हवा इतनो तेज कि वहां सोना कठिन हो गया, फिर भी कंबल में छिप कर किसी तरह सोता तो पवन के झपाटों से डोलती और आपस में लिपटती छूटती डालियों के नीचे नींद कहाँ ? ___चौथे दिन बड़े मन्दिर के सोपान मार्ग के पास एक प्रस्तर शिला की प्रतिलेखना की और प्रतिक्रमण के बाद बैठने सोने का वहां रक्खा, दो रातें यहां बिताई और अचलगढ़ का पाँच दिन का प्रोग्राम पूरा किया।
गरु शिखर का अवलोकन
आबू अचलगढ़ के बहुत से दर्शनीय स्थान पूर्वयात्राओं में देख लिये थे, सिर्फ गुरुशिखर देखना रह गया था, वह इस वक्त देख लिया । वै. सु. ११ को प्रातःकाल, मैं और मुनि सौभाग्य विजयजी दोनों अचलगढ़ से ओरिसा होकर गुरुशिखर पर चढ़े और वहां के दर्शनीय स्थानों को देखकर सवा दस बजे वापस अचलगढ़ आ गये।
योगी श्री शांतिविजयजी की मुलाकात आजकल योगी श्री शांतिविजयजी का मुकाम अचलगढ़ में है, हम गये तब आप कारखाने के पास वाले मकान में थे, हम आहार पानी से निपट चुके थे कि योगीराज के अनुचर साधु ने आकर कहा--'गुरुदेव आपसे मिलने के लिए बहुत उत्कण्ठित हैं' पर मेरी तबीयत अस्वस्थ थी, उन्निद्रता के कारण सिर में दर्द हो रहा था, अतः चार पांच बार आमन्त्रण पाने पर भी उस दिन मैं उनसे मिल नहीं सका, दूसरे दिन तीन बजे योगीराज का आमन्त्रण स्वीकार कर हम उनके स्थान पर गए, लगभग १४ वर्ष के बाद उनसे एक बार फिर मिले ।
१९८३ के और १६६८ के शांति विजयजी में मैंने बहुत कम
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