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________________ २६७ आया करते हैं, वहां से फिर सड़क अपने रूप से दीखने लगती है। इस विकट नाल से चढ़ने उतरने में यात्रियों को जो कष्ट होता है उसको वे ही समझ सकते हैं जो यहां से चढ़ते उतरते हैं । यहाँ से चढ़ते हुए टटुओं को देखकर तो हमारा हृदय कांप ही उठा, बेचारे चढ़ते क्या थे गिन गिन कर पैर रखते थे, जिन्हें देखकर कसाई को भी दया आती थी । बेरहमी के साथ मुंडका वसूल करने वाले सिरोही दरबार और उनके प्रधान मंत्री एक बार इस रास्ते से चढ़ उतर कर देखें और फिर सोचें कि इस विषय में उनका कोई कर्तव्य भी है या नहीं ? खटमलों का उत्पात हमारी इस यात्रा का कुछ मजा तो मार्ग की खराबी ने किरकिरा कर दिया था, और बाकी खटमलों ने । पहले की किसी भी यात्रा में हमने आबू पर खटमलों का त्रास नहीं देखा था, पर इस वर्ष यह नई बला गले पड़ी, उपाश्रय काफी बड़ा था पर खटमल इतने कि कम से कम मुझे तो रातभर निद्रा नहीं आई। दूसरे दिन मुनीमजी से कह सुनकर धर्मशाला की एक कोठरी खुलवाई पर वहां भी वही बात ! गभराकर तीसरे दिन अचलगढ़ चले गये। अचलगढ़ में पांच दिन अचलगढ़ में स्थान की तंगी का अनुभव हुआ, बड़ी देर के बाद ऊपर के भाग में एक छोटी सी कोठरी मिली, खटमलों की शंका तो वहां भी बनी रही, फिर भी पहली रात कुछ शांति से बीती, पर दूसरी रात को हमारे निवास का पता खटमलों को लग ही गया और सामने सोते हुए यात्रियों की पथारियों से वे हमारी कोठरी में आ धमके और सारी रात रात्रि जागरण कराया। .. तीसरे दिन कोठरी के पास वाले तिलक वृक्ष के नीचे प्रतिलेखना प्रमार्जनाकर रक्खी और प्रतिक्रमण के अनन्तर वहाँ जाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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