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________________ २६५ हमारी समझ मुजब इसके तीन कारण हो सकते हैं, एक ता जैन धार्मिक भावना का ह्रास, दूसरा समाज की आर्थिक स्थिति की कमजोरी और तीसरा व्यवस्थापक मैनेजर की अयोग्यता। पेढी के अधिकारियों को इन कारणों की जांच करना चाहिए । दूसरी यात्रा के दिनों का उपयोगःहमारी सं० १९८२ की यात्रा के २० दिन खासकर मन्दिरों के शिलालेखों को उतारने में लगे थे, इन बीस दिनों में हमने देलवाड़ा और अचलगढ़ के जैन मन्दिरों के बहुत से शिलालेख उतार लिये थे, यद्यपि शिलालेखों का कार्य कुछ अधूरा था, फिर भी गांव सिन्दरिया के उद्यापन पर जाना जरूरी होने से आबू से उतर गये थे। तीसरी यात्रा के समय का उपयोग सं० १९८३ की यात्रा का काल बड़ा लम्बा रहा, इस साल हम चैत्र सुदि में ही ऊपर चढ़ गये थे, जो ज्येष्ठ सुदि में वहां से उतरे। इस साल विजयेन्द्रसूरिजी, उपा० मंगलविजयजी, मुनि श्री जयन्तविजयजी, विशालविजयजी भी आबू पर थे और बहुत दिन ठहरे थे, इन्द्रसूरिजी का अधिक समय भ्रमण और अन्यान्य विशिष्ट व्यक्तियों की मुलाकातों में पूरा होता था। उपा० मंगलविजयजी आदि भी कभी कभी फिरने जाया करते थे, परन्तु मुनि जयन्तविजयजी का लक्ष्य मन्दिरों के शिलालेखों के पढ़ने और समझने में लगा हुआ था। वे बहुधा हमारे साथ मन्दिरों में आते, लेख पढ़ते और मन्दिरों के गुम्बजों में खुदे हुए चरित्रचित्रों को समझने का यत्न करते थे, उस वक्त इनका विचार केवल “आब गाइड' लिखने का था, शिलालेखसंग्रह इन्होंने बाद में किया। प्रस्तुत वर्ष में भगवान् महावीर का जन्म कल्याणकोत्सव देलवाडा की धर्मशाला में मनाया था, नींबडी दरबार सर दौलतसिंह Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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