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________________ २६४ प्रकृति-परिवर्तन सं. १६६५ की यात्रा में आबू पर वनस्पति जल और शीतलता आदि प्राकृतिक पदार्थो का जो आधिक्य दृष्टिगोचर हुआ था, वह बाद की यात्राओं में नहीं देखा गया और दूसरी, तीसरी, यात्रा के समय जो प्राकृतिक सौन्दर्य देखा गया था, उसमें अब की बार पर्याप्त ह्रास नजर आया। पहली यात्राओं के समय में हम कई बार आहार पानी करके दुपहर को अन्यान्य स्थानों का अवलोकन करने जाते थे, पर कड़ी धूप और मार्ग में कड़ी गर्मी का कभी अनुभव नहीं होता था, परन्तु अब वह बात नहीं रही, अब तो दुपहर को नंगे पैरों भ्रमण करना लगभग अशक्य हो गया है, इस प्राकृतिक परिवर्तन का मुख्य कारण वृष्टि और वनस्पति का कम होना है, आबू की वृष्टि का औसत ६१ इन्च के ऊपर का है, पर बहुधा अब यह देखा जाता है कि ३० ईंच से अधिक शायद ही आबू ऊपर पानी पड़ता हो। वृष्टि की कमी से वनस्पति भी काफी कम हो गई है। अगर कुदरत की रफ्तार यही रही तो भय है कि आबू भी कालान्तर में अन्य सामान्य पर्वतों की कोटि में आकर रह जायगा । यात्रियों की आमद रफ्तसं० १९६५ की यात्रा के समय आबू पर यात्रियों की आमद रफ्त अधिक नहीं थी, पांच दस यात्री प्रतिदिन आते और जाते, धर्मशाला का अधिक भाग खाली पड़ा रहता था, परन्तु बाद में स्थिति ने पलटा खाया, सं० १९८२-८३ में और आज भी यात्रिक पर्याप्त संख्या में आते जाते हैं, धर्मशालाएं बहुधा भरी रहती हैं, प्रतिदिन ४०-५० यात्रिक आते जाते रहते हैं, तीर्थ व्यवस्थापक पीढ़ी में भी काफ़ी चहल पहल रहती है, यह सब होते हुए भी एक बात खटकने वाली ज्ञात हुई है, वह यह है कि आजकल यात्रिकों से उतनी आमदनी नहीं होती जितनी १५ वर्ष पहले होती थी, मुनीमजी के कहने मुजब तो आजकल आमदनी से खर्चा भी पूरा नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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