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________________ २६३ किया है, आज से ४० वर्ष पहले ये निगम कोड़ाय (कच्छ) के भण्डार में से मँगवा कर हमने पढ़े थे । ऊपर लिखे सूत्रोक्त दश प्राचीन तीर्थों के अतिरिक्त वैभारगिरि, विपुलाचल, कोशला की जीवित स्वामि प्रतिमा, अवन्ति की जीवित स्वामि प्रतिमा आदि अनेक प्राचीन पवित्रतीर्थो के उल्लेख सूत्रों के भाष्य आदि में मिलते हैं, परन्तु इन सबका एक प्रबन्ध में निरूपण करना अशक्य जानकर उन्हें छोड़ देते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य ठीक न होने की दशा में भी प्राचीन तीर्थों के विषय में कुछ पृष्ठ लिखने का साहस किया है, इस दशा में इस लेख में रही हुई त्रुटियों को पाठक गण क्षन्तव्य गणेगे । इस आशा के साथ तीर्थ विषयक लेख यहां पूरा किया जाता है। (२) ग्राबू तीर्थ की यात्राओं के संस्मरण अाज हमने १४ वर्ष के बाद ता० ११-५-१९४१ को आबू तीर्थराज के दर्शन किये, अर्बुदगिरि की शीतल हवाने तन को और तीर्थंकर देवों की प्रशान्त मुद्रा धारिणी मूर्तियों के दर्शन ने मन को जो शान्ति प्रदान की उसका वर्णन होना कठिन है। ___ आज तक हम चार बार आबू पर चढे और यात्राएँ की, पहली बार स. १६६५ के वैशाख में, दूसरी बार १६८२ के वैशाख में तीसरी बार १९८३ के चैत्र में और चौथी बार १९९८ के वैशाख में, इन चारों ही यात्राओं के समय क्रमशः ४-२०-४७ और १० दिन आबू पर ठहरे थे। पहली बार दर्शन करके उतर गये थे, दूसरी बार देलवाड़ा तथा अचलगढ़ के मन्दिरों के लेख पढ़े और लिखे गये, तीसरी बार अवशिष्ट लेखों को उतारा और अन्यान्य स्थानों का अवलोकन किया, चौथी बार की यात्रा का उद्देश्य केवल तीर्थ दर्शन करने का था, फिर भी प्रसंगवश कई बातों का अवलोकन और अनुभव हो ही गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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