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सूत्र में उल्लिखित नहीं होता और श्रमणियों को "आचार प्रकल्प " पढ़ाने का आर्यरक्षित ने निषेध किया होता तो "व्यवहार सूत्र " में उसका विधान नहीं रहता, इन शंकाओं का समाधान यही है कि "व्यवहार" भद्रबाहु प्रणीत होने से उसमें कोई भी विधान सूत्र आर्यरक्षित ने कम नहीं किया, उन्होंने मुख जबानी श्रमणियों को " प्रकल्पाध्ययन" आदि छेदसूत्र न पढ़ने की आज्ञा जारी की थी, जिसका उल्लेख भाष्य चूर्णियों में आज भी मिलता है ।
आर्यं रक्षित के बाद लगभग २०० वर्ष के भीतर स्कन्दिलाचार्य की वाचना के समय में भी श्रमणियों को छेदसूत्र न पढ़ने संबंधी आर्य रक्षितसूरिजी का प्रस्ताव सर्वसम्मत नहीं हुआ था, यही कारण है कि "व्यवहार सूत्र" में श्रमणियों को प्रकल्पाध्ययन पढ़ाने का विधान था और आज भी विद्यमान है तथापि आज लगभग १५०० वर्षों से श्रमणियों का छेदसूत्र पठन-पाठन सर्वथा बन्द है, इसका कारण आर्यरक्षित की मौखिक निषेधाज्ञा ही हो सकता है ।
निशीथ भाष्य और इसके कर्ता
निशीथ भाष्यकार कौन हैं ? इसके सम्बन्ध में चूर्णि में आने वाले सिद्धसेन सूरि के नामोल्लेखों से भ्रमित होकर कोई विद्वान् भाष्यकार को सिद्धसेन सूरि मानते हैं और उन्हें प्रसिद्ध भाष्यकार श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के समकालीन मानते हैं, जो निराधार है, क्योंकि प्राचीन ताडपत्रीय भण्डारों की ग्रन्थ सूचियों में अथवा अन्य किसी भी ग्रन्थ में सिद्धसेन का निशीथ भाष्यकार के रूप में उल्लेख नहीं मिलता ।
निशीथ चूर्णिकार ने भी अपनी चूर्णि में क्षमाश्रमण को निशीथ भाष्यकार के नाम से किया, कतिपय गाथाओं की चूर्णि के प्रारम्भ में करते हैं" ऐसा उल्लेख करने मात्र से सिद्धसेन निशीथ भाष्यकार
प्रमाणित नहीं होते ।
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कहीं भी सिद्धसेन
उल्लिखित नहीं “सिद्धसेन व्याख्या
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