SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कई तो शास्त्रानुसार विहार करना छोड़कर स्थायी निवास करने वाले हो गये थे, "विक्रम की तीसरी शती से सातवीं शती तक का ५०० वर्ष का समय बहुश्रुत प्रधान होते हुए भी शिथिलाचार प्रधान था, इन संयोगों में युगप्रधान स्कन्दिलाचार्य ने वर्तमान कालीन परिस्थिति के साथ संगत करने के लिए भद्रबाहु के "व्यवहाराध्ययन" में उपयोगी परिर्वतन किये हों तो अनुचित नहीं है, देवद्धिगणि क्षमाश्रमण के समय में आगमों की पंचांगियां तक अवश्य लिखी गयी थीं, परन्तु उस समय आगमों में समन्वय करने के अतिरिक्त परिवर्तन करने के कोई प्रमाण नहीं मिलते। नन्दी, अनुयोग द्वार आदि सूत्र अन्तिम वाचना के पहले निर्मित हो चुके थे, नन्दी के प्रारम्भ में तथा आवश्यक के प्रारम्भ में गाथाओं में मंगलाचरण दिये हैं वे तत्कालीन हो सकते हैं, शेष नहीं। व्यवहाराध्ययन में आचार-प्रकल्प के नामोल्लेख आचार्य आर्यरक्षित द्वारा किये गए परिवर्तनों के सम्बन्ध में हम पहले लिख पाए हैं, कि आर्यरक्षित सूरिजी ने जैन श्रमणियों को आचार प्रकल्पादि छेदसूत्रों को पढ़ाने का निषेध किया था, इस निषेध का सूचन आचार प्रकल्पाध्ययन की चूणि तथा भाष्य आदि से होता है और व्यवहाराध्ययन के कर्ता श्रुत स्थविर भद्रबाहु होते हुए भी उसमें “आचार प्रकल्प" का अनेक स्थलों में उल्लेख होना व्यवहार तथा आचार प्रकल्प के पौर्वापर्य में शंका उत्पन्न करता है, व्यवहार के उद्देशक तीसरे में दो वार, उद्देशक पांचवे में सातवार उद्देशक छठवें में चार बार और उद्देशक दसवें में तीन बार इस प्रकार व्यवहार के चार उद्देश्कों में सोलह बार "आचार प्रकल्प" का नामोल्लेख हुआ है, इन उल्लेखों से तो यह प्रमाणित होता है कि "व्यवहार सूत्र' के निर्माण काल में श्रमण श्रमणियों को "आचार प्रकल्प छेद" आदि पढ़ने का अधिकार था, यदि "आचार प्रकल्प' के कर्ता आर्थ रक्षित सूरि होते तो इसका नाम "व्यवहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.je www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy