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________________ १७ निशीथ के १६ वें उददेशक के भाष्य की “उदिए जोहाउल सिद्धसेखो, सपत्थिवो विजितसत्तुसेखो । समंततो साहुसुम्पयारे, अकासि अंधे दमिले य घोरे ॥ ५७५६ || " इस गाथा में आने वाले “सिद्धसेणो" इस शब्द प्रयोग से भी कोई कोई भाष्यकार को सिद्धसेन मानते हैं, जो ठीक नहीं है, गाथा के द्वितीय पाद में आने वाले "सत्तुसेणो" इस "सेण" शब्द के साथ अनुप्रास मिलाने के लिए ही भाष्यकार ने प्रथम चरण में "सिद्धसेणो” यह शब्द प्रयोग किया है, यदि भाष्यकार स्वयं सिद्धसेन होते तो वे अपना नाम स्पष्ट रूप से लिख सकते थे और वह भी भाष्य की समाप्ति में, सो ऐसी बात तो है नहीं, भाष्यकार ने राजा सम्प्रति के सैनिक बल का सूचन करने के लिए उपर्युक्त गाथा लिखी है और ऐसी प्रकरणान्तर्गत गाथा के अमुक शब्द को देखकर उसे ग्रन्थाकार का नाम मान लेना, पद्धति विरुद्ध है, अधिकांश में भाष्यकार अपनी कृति में अपना नाम लिखते ही नहीं हैं और कोई ऐसी विशेष कृति हो तो उसमें नाम निर्देश होता भी है तो ग्रन्थ की आदि में अथवा अन्त में, अप्रासंगिक स्थान में नहीं । निशीथ के विशेष चूर्णिकार आचार्य जिनदास गणिजी ने अपने विवरण में सिद्धसेन की व्याख्या का निर्देश किया है, कहीं कहीं उनकी गाथा का भी सूचन किया है, इससे यही सिद्ध होता है कि जिनदास के पूर्ववर्ती निशीथ के सामान्य चूर्णिकार आचार्य सिद्धसेन होने चाहिए और उन्होंने अपनी चूर्णि में उद्धृत पूर्ववर्ती गाथाओं को, सिद्धसेन की गाथाएँ मान ली हैं, वास्तव में सिद्धसेन भाष्यकार नहीं परन्तु चूर्णिकार थे, उन्होंने जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण विरचित गाथाबद्ध "जीत कल्प" पर भी चूर्णि बनाई थी और इन्हीं चूर्णिकार सिद्धसेन ने निशीथ पर भी सामान्य चूर्णि लिखी हो तो संभावित है और विशेष चूर्णि में उनके नामोल्लेख भी संगत हो जाते हैं । आचार्य श्री जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण का समय विक्रम की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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