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________________ २८. वज्रस्वामी के उपर्युक्त वर्णन से जाना जा सकता है कि वज्रसेन के विहार करने पर तुरंत आप वहां से अनशन के लिए रवाना हो गए थे और निकट प्रदेश में ही रहे हुए रथावर्त पर्वत पर अनशन किया था। प्राचीन विदिशा नगरी (आज का भिलसा) के समीप पूर्वकाल में “कुजरावर्त" तथा "रथावर्त" नामक दो पहाड़ियाँ थीं । वज्रस्वामी ने इसी रथावर्त नामक पर्वत पर अनशन किया होगा और यही "रथावर्त" पर्वत जैनों का प्राचीन तीर्थ होगा, ऐसा हमारा मानना है । ७. चमरोत्पातभगवान् महावीर छद्मस्थावस्था के बारहवें वर्ष में वैशाली की तरफ से विहार करते हुए सुंसुमारपुर नामक स्थान के निकटवर्ती उपवन में अशोक वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ थे, तब चमरेन्द्र नामक असुरेन्द्र वहां आया और महावीर की शरण लेकर स्वर्ग के इन्द्र शक्र पर चढ़ाई कर गया । सुधर्मा सभा के द्वार तक पहुंच कर शक को डराने धमकाने लगा । शक्रन्द्र ने भी चमरेन्द्र को मार हटाने के लिए अपना वज्रायुध उसकी तरफ फेंका। आग की चिनगारियाँ उगलते हुए वन को देखकर चमर आया उसी रास्ते भागा। शक्र ने सोचा..."चमरेन्द्र यहां तक किसी भी महर्षि तपस्वी की शरण लिए बिना नहीं पा सकता। देखें ! यह किसकी शरण लेकर प्राया है ?" इन्द्र ने अवधि ज्ञान से जाना कि चमर महावीर का शरणागत बन कर आया है और वहीं जा रहा है, वह तुरन्त वज्र को पकड़ने दौड़ा। चमरेन्द्र अपना शरीर सूक्ष्म बनाकर भगवान् महावीर के चरणों के बीच घुसा। वज्रप्रहार उस पर होने के पहिले ही इन्द्र ने वज्र को पकड़ लिया। इस घटना से सुसुमारपुर और उसके आस पास के गांवों में सनसनी फैल गई। लोगों के झुंड के झुंड घटना स्थल पर आये और घटना की वस्तुस्थिति को जान कर भगवान् महावीर के चरणों में झुक पड़े । भगवान् महावीर तो वहाँ से विहार कर गए, परन्तु लोगों के हृदय में उनके शरणागत रक्षकत्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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