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________________ २७६ वज्रस्वामि के अनशन काल में इन्द्र ने आकर इस पर्वत की रथ में बैठकर प्रदक्षिणा की थी जिससे इसका नाम "रथावर्त' पड़ा था। परन्तु यह मन्तव्य हमारी राय में प्रमाणिक नहीं है, क्योंकि आर्य वज्रस्वामी के अनशन का समय विक्रम की प्रथम शताब्दी का अन्तिम भाग है, जब कि आचाराङ्ग नियुक्तिकार श्रुतधर भद्रबाहुस्वामी आर्यवज्र से सैकड़ों वर्ष पहले हो गए हैं, इस से पर्वत का रथावर्त, यह नाम भद्रबाहुस्वामी के पूर्वकाल का है, इसमें शंका को स्थान नहीं। ___ रथावतं पर्वत किस प्रदेश में था, इस बात का विचार करते समय हमें आर्य वज्रस्वामी के अन्तिम समय के विहार क्षेत्र पर विचार करना होगा । आचार्य वज्रस्वामी अपनी स्थविर अवस्था में सपरिवार मालव देश में विचरते थे ऐसा जैन ग्रन्थों के उल्लेखों से जाना जाता है । उस समय भारत में बड़ा भारी द्वादश वार्षिक दुर्भिक्ष प्रारम्भ हो चुका था । साधुओं को भिक्षा मिलना तक कठिन हो गया था । एक दिन तो स्थविर वज्रस्वामि ने अपने विद्याबल से आहार मंगवा कर साधुओं को दिया और कहा"बारह वर्ष तक इसी प्रकार विद्यापिण्ड से शरीर निर्वाह करना होगा।" इस प्रकार जीवन निर्वाह करने में लाभ मानते हो तो वैसा करें अन्यथा अनशन द्वारा जीवन का अन्त कर दें। श्रमणों ने एक मत से अपनी राय दी कि इस प्रकार दूषित आहार द्वारा जीवन निर्वाह करने से तो अनशन से देह त्याग करना ही अच्छा है । इस पर विचार करके आर्य वज्रस्वामि ने अपने एक शिष्य वज्रसेन मुनि को थोड़े से साधुओं के साथ कोंकण प्रदेश में विहार करने की आज्ञा दी और कहा-"जिस दिन तुमको एक लक्ष सुवर्ण से निष्पन्न भोजन मिले तब जानना कि दुर्भिक्ष का अन्तिम दिन है । उसके दूसरे ही दिन से अन्न संकट हलका होने लगेगा ।" अपने गुरुदेव की आज्ञा सिर चढा कर वज्रसेन मुनि ने कोंकण देश की तरफ विहार किया और वज्रस्वामि ने पांच सौ मुनियों के साथ रथावर्त पर्वत पर जाकर अनशन धारण किया। 38 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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