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________________ २७२ अर्थात् - 'भगवान् ऋषभदेव हस्तिनापुर से विहार करते हुए पश्चिम में बहली देश की राजधानी तक्षशिला के उद्यान में पधारे वनपालक ने राजा बाहुबली को भगवान के आगमन की बधाई दी । राजा ने सोचा, कल सर्व ऋद्धि विस्तार के साथ भगवान् की पूजा करूंगा । राजा बाहुबली दूसरे दिन बड़े ठाट-बाट से भगवान् की तरफ गया, परन्तु उसके जाने के पूर्व ही भगवान वहां से विहार कर चुके थे । अपने पूज्य पिता ऋषभ को निवेदित स्थान तथा उसके आसपास न देखकर बाहुबली बहुत ही खिन्न हुआ और वापिस लौट कर भगवान् रात भर जहां ठहरे थे, उस स्थान पर एक बड़ा गोल चक्राकार स्तूप बनवाया और उसका नाम "धर्मचक्र" दिया । भगवान् ऋषभदेव छद्मस्थावस्था में एक हजार वर्ष तक विचरे ।' आवश्यक निर्युक्ति की उपर्युक्त गाथा के विवरण में चूर्णिकार ने धर्मचक्र के सम्बन्ध में जो विशेषता बताई है, वह निम्नलिखित है 'जहां भगवान् ठहरे थे, उस स्थान पर सर्वरत्नमय एक योजन परिधिवाला, जिस पर पाँच योजन ऊंचा ध्वज दंड खड़ा है, धर्मचक्र का चिन्ह बनवाया ।' । " बहली अडंबहल्ला, जोगविस सुवण्णभूमी आहिंडिया भगवया, उसमेण तवं चरंतेणं ॥ ३३६ ॥ बहली जोगा पल्हगा य जे भगवया समसिहा । अन्न य मिच्छजाई, ते तइश्रा भद्दया जाया ||३३७|| तित्थयराणं पढमो, उसभरिसी विहरियो निरुवसग्गो । अट्ठाव गगवरो, अग्ग (य) भूमी जिणवरस्स ||३३८॥ उमत्थपरिश्रा, वाससहस्सं तो पुरिमताले । गग्गोहस् य हेट्ठा, उप्परणं केवलं नाणं ॥ ३३६॥ ॥ आधुनिक पश्चिमी पंजाब के रावलपिंडी जिले में 'शाह की ढेरी' नाम से जो स्थल प्रसिद्ध हैं वही प्राचीन तशक्षिला थी, ऐसा शोधकों का निर्णय है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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