________________
२७१
चाहा, वह अपने ऐरावण हाथी पर आरूढ होकर दिव्य परिवार के साथ भगवान् के पास क्षण भर में प्रा पहुंचा, उसने तीन प्रदक्षिणा देकर दशार्ण कूट पर्वत की एक लम्बी चौड़ी चट्टान पर अपना वाहन ऐरावण हाथी उतारा, दिव्य शक्ति से इन्द्र ने हाथी के अनेक दांतों पर अनेक-अनेक बावडियां, बावडियों में अनेक कमल और कमलों की कणिकाओं पर देव-प्रासाद और उनमें होने वाले बत्तीस पात्र बद्ध नाटकों के अद्भुत दृश्य दिखलाकर राजा की शक्ति और सजावट को निस्तेज बनाकर उसके अभिमान को नष्ट कर दिया, राजा ने देखा इन्द्र की शक्ति के सामने मेरी शक्ति नगण्य है, भला, सूर्य के प्रकाश के सामने छोटा सा सितारा कैसे चमक सकता है ? उसने अपने पूर्व भव के धर्म कृत्यों की न्यूनता जानी और भगवान् महावीर का वैराग्यमय उपदेशामृत पान कर संसार का मोह छोड श्रमण धर्म में दीक्षित हो गया। ___दशार्णकूट की जिस विशाल शिला पर इन्द्रका ऐरावण खड़ा था, उस शिला में उसके अगले पगों के चिन्ह सदा के लिए बन गये, बाद में भक्त जनों ने उन चिन्हों पर एक बड़ा जिन चैत्य बनाकर उसमें भगवान महावीर की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई, तब से इस स्थान का नाम "गजानपद' तीर्थ सदा के लिए अमर हो गया।
आज यह गजानपद तीर्थ भूला जा चुका है, यह स्थान भारत भूमि के अमुक प्रदेश में था, यह भी निश्चित रूप से कहना कठिन है, फिर भी हमारे अनुमान के अनुसार मालवा के पूर्व में और आधुनिक बुंदेल खण्ड के प्रदेश में कहीं होना संभवित है।
४. धर्मचक्र तीर्थअानाराङ्ग नियुक्ति सूचित चौथा तीर्थ धर्मचक्र है । धर्मचक्र तीर्थ की उत्पत्ति का विवरण आवश्यक नियुक्ति तथा उसकी प्राचीन प्राकृत टीका में नीचे लिखे अनुसार मिलता है
"कल्लं सचिड्ढीए, पूएमहऽदछु धम्मचक्कं तु । विहरइ सहस्समेगं, छउमत्थो भारहे वासे ॥३३५॥"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org