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________________ २६२ "याचक" शब्द प्रचलित हुआ, चिता कुण्डों में अग्नि- चयन करने के कारण तीन कुण्डों में अग्नि स्थापन करने का प्रचार चला और वैसा करने वाले "आहिताग्नि" कहलाये | उपर्युक्त सूत्रोक्त वर्णन के अतिरिक्त भी अष्टापद तीर्थं से सम्बन्ध रखने वाले अनेक वृत्तान्त सूत्रों, चरित्रों तथा प्रकीर्णक जैन ग्रन्थों में मिलते हैं परन्तु उन सब के वर्णनों द्वारा लेख को बढाना नहीं चाहते । (२) उज्जयन्त "उज्जयन्त" यह गिरनार पर्वत का प्राचीन नाम है, इसका दूसरा प्राचीन नाम " रैवतक" पर्वत भी है, "गिरनार " यह इसका तीसरा पौराणिक नाम है, जो कल्पों, कथाओं में मिलता है । उज्जयन्त तीर्थ का नाम निर्देश प्रचाराङ्ग निर्मुक्ति में किया गया है जो ऊपर बता आए हैं, इसके अतिरिक्त कल्प- सूत्र दशा श्रुतस्कन्ध, आवश्यक सूत्र आदि में भी इसके उल्लेख मिलते हैं, कल्पसूत्र में इस पर भगवान् नेमिनाथ के दीक्षा, केवलज्ञान तथा निर्वाण नामक तीन कल्याणक होने का प्रतिपादन किया गया है, आवश्यक सूत्रान्तर्गत सिद्धस्तव की निम्नोद्धत गाथा में भी भगवान नेमिनाथ के दीक्षा ज्ञान और निर्वाण कल्याणक होने का सूचन मिलता है, जैसे— "उज्जित सेल सिहरे, दिक्खा, नाणं र्निसीहिया जस्स । तं धम्मचक्कवट्टि, अरिहनेमिं नम॑सामि ||४||" अर्थात् -- 'उज्जयन्त पर्वत के शिखर पर जिसकी दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाण हुआ उस धर्मचक्रवर्ती भगवान नेमिनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ | सिद्धस्तव की यह तथा इसके बाद की " चत्तारिअठ्ठ्ठे" तथा धम्मचक्कवट्टिं ये दोनों गाथायें प्रक्षिप्त मालूम होती हैं, परन्तु ये कब और किसने प्रक्षिप्त की यह कहना कठिन है, प्रभावक चरित्रान्तर्गत आचार्य बप्पभट्टि के प्रबन्ध में एक उपाख्यान है जिसका सारांश यह है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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