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________________ 'एक समय शत्रुजंय-उज्जयंत तीर्थ की यात्रा के लिए राजा आम संघ लेकर उज्जयंत की तलहट्टी में पहुंचा, वहां दिगम्बर जैन संघ भी आया हुआ था। दिगम्बरों ने आम को ऊपर जाने से रोका, आम सैनिक बल का प्रयोग करने को उद्यत हुए तब बप्पभट्टिसूरि ने उनको रोककर कहा-धार्मिक कार्यो के निमित्त प्राणि-संहार करना अनुचित है, इस झगड़े का निपटारा दूसरे प्रकार से होना चाहिये, उन्होंने कहा-दो कुमारी कन्याओं को बुलाना चाहिये, श्वेताम्बरों की कन्या दिगम्बर संघ के पास और दिगम्बर संघ की कन्या श्वेताम्बर संघ के पास रखी जाय, फिर दोनों संघों के अग्रेसर धर्माचार्य, कन्याओं को तीर्थ निर्णय करने का प्रमाण पूछे, आचार्य बप्पट्टि सूरि ने श्वेताम्बर संघ की तरफ खड़ी दिगम्बर संघ की कन्या के मुख से अम्बिका देवी द्वारा-"उज्जिंतसेलसिहरे" यह गाथा कहलायी और तीर्थ श्वेताम्बर सप्रदाय का स्थापित किया । परन्तु यह उपाख्यान ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्यवान् नहीं है, क्योंकि प्राचार्य बप्पभट्टि विक्रम संवत् ८०० में जन्मे थे और नवमी शताब्दी में उनका जीवन व्यतीत हुआ था, तब आचार्य हरिभद्र मूरिजी जो इनके सौ वर्षों से अधिक पूर्ववर्ती थे, सिद्धस्तव की टीका में लिखते हैं-'सिद्धस्तव की आदि की तीन गाथायें नियम पूर्वक बोली जाती हैं पर अन्तिम दो गाथाओं के बोलने का नियम नहीं है,' इससे यह सिद्ध होता है कि ये गाथाएँ हैं तो हरिभद्र सूरिजी के पूर्वकाल की, परन्तु हैं प्रक्षिप्त, इसीलिए आचार्य ने इनका बोलना अनियत बताया है। हरिभद्रसूरिजी के परवर्ती आचार्य हेमचन्द्रसूरिजी आदि ने भी अपने ग्रन्थों में यही आशय व्यक्त किया है। "उज्जयन्त-तीर्थ' के सम्बन्ध में अन्य भी अनेक सूत्रों तथा उनकी टीकाओं में उल्लेख मिलते हैं, परन्तु उन सबका यहाँ वर्णन करके लेख को बढाना उचित न होगा, आचार्य जिनप्रभसूरिकृत"उज्जयन्त महातीर्थ कल्प" तथा अन्य विद्वानों के रचे हुए प्रस्तुत तीर्थ के स्तव आदि के उपयोगी कतिपय उद्धरण देकर इस विषय ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only WW www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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