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हस्तिनापुर (१), शोरीपुर (२), मथुरा (३), अयोध्या (४), काम्पिल्य (५), बनारस (काशी) (६), श्रावस्ति (७), क्षत्रियकुण्ड .८), मिथिला (६), राजगृह (१०), अपापा (पावापुरी) (११), भद्दिलपुर (१२), चम्पापुरी (१३), कौशाम्बी (१४), रत्नपुर (१५), चन्द्रपुरी (१६), आदि तीर्थंकरों की जन्म, दीक्षा, ज्ञान, निर्वाण की भूमियाँ होने के कारण से ये स्थान भी जैनों के प्राचीन तीर्थ थे परन्तु वर्तमान समय में इनमें से अधिकांश तीर्थ विलुप्त हो चुके हैं, कुछ कल्याणक भूमियों में आज भी छोटे बड़े जिन-मन्दिर बने हुए हैं और यात्रिक लोग दर्शनार्थ जाते भी हैं, परन्तु इनका पुरातन महत्त्व आज नहीं रहा, इन तीर्थों को "कल्याणकभूमियाँ" कहते हैं ।
उक्त तीर्थों के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी स्थान जैन तीर्थों के रूप में प्रसिद्धि पाये थे जो कुछ तो आज नामशेष हो चुके हैं और कुछ विद्यमान भी हैं, इनकी संक्षिप्त नाम सूची यह है-प्रभास पाटन-चन्द्रप्रभ (१), स्तम्भ-तीर्थ-स्तम्भनक पार्श्वनाथ (२), भृगुकच्छ-अश्वावबोध-शकुनिकाबिहार-मुनिसुव्रत ( ३ ), सूरक (नालासोपारा) (४), शंखपुर-शंखेश्वर पार्श्वनाथ (५) चारूपपार्श्वनाथ (६), तारंगाहिल-अजितनाथ (७), अर्बुदगिरि (आबूमाउन्ट) (८), सत्यपुरीय महावीर (६), स्वर्णगिरि महावीर (जालोर) (१०), करहेटक-पार्श्वनाथ (११), विदिशा (भिल्सा) (१२), नासिक्य-चन्द्रप्रभ (१३), अन्तरीक्ष-पार्श्वनाथ (१४), कुल्पाक-आदिनाथ (१५), खण्डगिरि (भुवनेश्वर) (१६), श्रवण बेलगोल (१७) इत्यादि अनेक जैन प्राचीन तीर्थ प्रसिद्ध हैं, इनमें जो विद्यमान हैं, उनमें कुछ तो मौलिक हैं, तब कतिपय प्राचीन तीर्थो को हम पौराणिक तीर्थ कहते हैं, इनका प्राचीन जैन साहित्य में वर्णन न होने पर भी कल्पों, जैन चरित्रग्रन्थों तथा प्राचीन स्तुति-स्तोत्रों में महिमा गाया गया है ।
उक्त तीन वर्गों में से इस लेख में हम प्रथम वर्ग के सूत्रोक्त जैन तीर्थो का ही संक्षेप में निरूपण करेंगे ।
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