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प्राकृत-लक्षण - कवि चंड कृत प्राकृत लक्षण के कर्ता विद्वान् चण्ड जैन थे, यह बात इनके मंगलाचरण के श्लोक से ज्ञात हो जाती है। यद्यपि लक्षण बहुत ही छोटा ग्रन्थ है, फिर भी इन्होंने जो जो प्राकृत के नियम लिखे हैं वे बहुत प्राचीन कालीन प्राकृत के हैं और दिए गए उदाहरण भी अधिकांश जैन सूत्रों की भाषा के प्रतीत होते हैं, इससे भी यह निश्चित है कि ग्रन्थकार जैन तो थे ही, परन्तु वे सत्ता समय के लिहाज से भी बहुत प्राचीन होने चाहिए।
प्राकृत लक्षण में कुल ६६ निन्यानवें सूत्र हैं, जिनमें सुबन्त के नियम, सन्धि आदि का विवरण दिया है, अन्त में अपभ्रंश, पैशाचिक, मागधी आदि भाषाओं के मौलिक नियम उल्लिखित किये हैं। तिङन्त प्रदेश का नाम निर्देश तक नहीं किया, प्राचीन प्राकृत भाषा का परिचय प्राप्त करने के लिए पुस्तक उपयोगी है।
षड़भाषा-चन्द्रिका-ले० लक्ष्मीधर षड् भाषाचन्द्रिका प्राकृत भाषाओं का सम्पूर्ण व्याकरण है, यह त्रिविक्रम देव के प्राकृत शब्दानुशासन के सूत्रों को प्रक्रिया के रूप में व्यवस्थित कर बनाया गया है, जिससे पढ़ने वालों को विशेष अनुकूल हो सकता है, त्रिविक्रम देव ने स्वयं षड्भाषा चन्द्रिका को अपने "प्राकृत शब्दानुशासन” की सुबोध विस्तृत टीका बतलाया है, तब चन्द्रिका के कर्ता आर्य लक्ष्मीधर स्वयं इसके उपोद्घात में लिखते हैं
"वृत्तिं त्रैविक्रमी गूढां, व्याचिख्यासन्ति ये बुधाः । पड़भाषा चन्द्रिका तैस्तद व्याख्या रूपा विलोक्यताम् ॥१६॥" "अपशब्दमहागते, षड्भाषाकृष्णरात्रिषु । पतन्ति कविशार्दूलाः षडभाषाचन्द्रिका विना ॥२१॥
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