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"सिद्ध हेम शब्दानुशासन' आठ अध्यायों में समाप्त हुअा है, प्रथम के ७ अध्यायों में संस्कृत व्याकरण है, तब अष्टम अध्याय के चारों पाद प्राकृत-लक्षण को सम्पूर्ण करते हैं। संस्कृत व्याकरण के कुल सूत्रों की संख्या ३५६६ हैं, जिनकी श्लोक संख्या ७८७ है और अष्टम अध्याय के सूत्रों की संख्या १११६ है, ये सूत्र श्लोक परिमाण में २४४ होते हैं। यह शब्दानुशासन आचार्य हेमचन्द्र ने गुजरात के चक्रवर्ती महाराज जयसिंह देव के अनुरोध से बनाया है जो बृहद्वृत्ति के निम्नोद्धृत श्लोक से जाना जाता है"तेनातिविस्तृतदुरागमविप्रकीर्ण-शब्दानुशासनसमूहकदर्थितेन । अभ्यर्थितो निरवमं विधिवद् व्यधत्त,शब्दानुशासनमिदं खलु हेमचन्द्रः।
उपर्युक्त श्लोक से मालूम होता है, कि अन्यान्य व्याकरण शास्त्रों की दुर्बोधता जानने के बाद राजा जयसिंह देव ने आचार्य हेमचन्द्र सूरि को सरल तथा सुगम व्याकरण शास्त्र बनाने की प्रार्थना की और हेमचन्द्र सूरि ने प्रस्तुत व्याकरण का निर्माण किया है।
हेमशब्दानुशासन में स्मत ग्रन्थकार इस व्याकरण तथा इसकी वृत्तियों में निम्नलिखित प्राचीन आचार्यों के नामोल्लेख मिलते हैं-१ आपिशलि, २ यास्क, ३ शाकटायन, ४ गार्ग्य, ५ वेदमित्र, ६ शाकल्य, ७ इन्द्र, ८ चन्द्र, ६ शेष भट्टारक, १० पतञ्जलि, ११ वात्तिककार, १२ पाणिनि, १३ देवनन्दी, १४ जयादित्य, १५ वामन, १६ विश्रान्तविद्याधरकार १७ विश्रान्तन्यासकार (मल्लवादी सूरि) १८ जैन शाकटायन, १६ दुर्गसिंह, २० श्रुतपाल, २१ भर्तृहरि, २२ क्षीरस्वामी, २३ भोज, २४ नारायण कण्ठी २५ सारसंग्रहकार, २६ द्रमिल २७ शिक्षाकार, २८ उत्पल २६ जयन्तीकार ३० न्यासकार, ३१ पारायणकार।
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