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सिद्धहेमशब्दानुशासन श्राचार्य हेमचन्द्र
उपर्युक्त कृति आचार्य हेमचन्द्र की मौलिक कृति है, अपने पूर्ववर्ती पाणिन्यादि कृत प्राचीन व्याकरण शास्त्रों का अवगाहन कर सरलतया सीखा जा सके, ऐसा यह व्याकरण है, इसकी परिभाषाएं "कातन्त्र व्याकरण" अर्थात् कलापक व्याकरण से मिलती जुलती हैं, इतना ही नहीं अन्यान्य प्रकरण भी कातन्त्र की शैली पर रचे गए हैं, फिर भी यह व्याकरण कातन्त्र सा संक्षिप्त नहीं है, पाणिनीय अष्टाध्यायी के ऊपर स्वर विषयक और श्रुति विषयक सूत्रों को छोड़ कर शेष सभी विषयों के सूत्र इसमें उपलब्ध होते हैं, पाणिनि का "वर्णाद्र ब्रह्मचारिणि" "वैशारिणो मत्स्ये" इत्यादि अल्पव्यापक विषय वाले सूत्रों को भी अपनी अष्टाध्यायी में स्थान देने में संकोच नहीं किया ।
"सिद्ध - हेम शब्दानुशासन" पर आचार्य हेमचन्द्र की तीन वृत्तियां हैं, जिनमें पहली "लघुवृत्ति" जिसका मूल नाम " प्रकाशिका" टीका है, यह वृत्ति ६००० श्लोक परिमित है, दूसरी बृहद्वृत्ति इससे तीन गुणे परिमाण की है जो "बृहद्वृत्ति" इस नाम से पहिचानी जाती है, यह १८००० श्लोक - परिमित होने से अष्टादश सहस्री भी कहलाती है, तीसरी महावृत्ति "बृहद्न्यास " के नाम से प्रसिद्ध है, इसका आदि का भाग थोड़ा सा मुद्रित हुआ है, परन्तु सम्पूर्ण महान्यास मिलता नहीं है, महान्यास का श्लोक परिमाण ८४००० हजार बताया जाता है । इस पर एक विद्वान् कृत लघुन्यास भी है, जो बृहद्वृत्ति के साथ छप भी चुका है, इसके अतिरिक्त "लिंगानुशासन" " धातुपाठ" आदि व्याकरण के सभी अंगों का निर्माण कर इस शब्दानुशासन को सम्पूर्ण उपयोगी बना दिया है ।
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