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ब्राह्मणों में प्रचलित कई शब्दों को सिद्ध करने का विचार ही छोड़ दिया था, इतना ही नहीं महावृत्ति के अन्त में पाणिनि तक को भला बुरा कहने से नहीं हिचकिचाये तो जैनेतर व्याकरणों के धुरन्धर कर्त्ताओं का नामोल्लेख तो करते ही कैसे ? पाणिनि ने अपने सूत्रों में अनेक वैदिक ऋषियों के मतों के साथ नामोल्लेख किये हैं, उसी का अनुकरण करके अभयनन्दि ने भी जैनेन्द्र व्याकरण में ५-६ जैन आचार्यों का नाम निर्देश किया है, जो सरासर कल्पित है, इनके उल्लिखित नाम वाले कुछ नाम तो कल्पित मात्र हैं, तब कतिपय नामधारी आचार्य पूर्वकाल में हो भी गये हैं तो वे वैयाकरण होने के कोई प्रमाण नहीं हैं ।
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