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कलाप व्याकरण ( कातन्त्र-व्याकरण )
दुर्गसिंह-वृत्तिकार "देवदेवं प्रणम्यादौ, सर्वज्ञं सर्वदर्शिनम् । कातन्त्रस्य प्रवक्ष्यामि, व्याख्यानं शार्ववर्मिकम् ॥१॥
(१) सन्धि पश्चक
प्रथम पाद के सूत्र २३ द्वितीय , , , १८ तृतीय पाद , , ४ . चतुर्थ , , , १४ पचम " " " १८
सर्व सन्धि सूत्र ७७ पांच पाद में सन्धि प्रकरण पूरा किया है । (२) नाम्नि चतुष्टय
प्र० पा० सूत्र ७७ द्वि० ॥ ॥ ६५ तृ० , , ६४
च० " " ५२ समास पाद , , २६ तद्धित पाद , , ५०
इसी पाद में रस्नेश्वर चक्रवर्ती ने राजादि गण की नये ढंग से व्याख्या की है, जिसमें ५६ सूत्र स्वयं के हैं, तथा मूल सूत्र ४१ वें की वृत्ति से वृत्ति प्रारम्भ की है और ४२ के पूर्व समाप्त की है। इस नाम्नि चतुष्टय में चार पाद हैं, तथा विषय, दो हैं, समास तथा तद्धित । एवं कुल ६ पाद हैं और सूत्र ३३१ हैं ।
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