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२३६ का अनेक बार निर्देश हुआ है, कतिपय विचारकों ने तो काशकृत्स्नि, आपिशलि का पाणिनि के पूर्वगामी होना बताया है ।
शाकटायन के सम्बन्ध में तो पहले कह आये हैं कि ये शाकटायन, पाणिनि तथा यास्काचार्य के पूर्वगामी थे, जिनका नाम निर्देश पाणिनीय अष्टाध्यायी में तथा यास्कभाष्य में मिलता है ।
__ पाणिनि सर्व प्रसिद्ध पाणिनीय व्याकरण के कर्ता थे, इस विषय में तो कुछ कहना ही नहीं, इनके सत्ता समय के सम्बन्ध में विद्वानों की प्राथमिक मान्यता थी कि पाणिनि ईसा के पूर्व की अष्टमी शती के वैयाकरण थे परन्तु बाद में इस मान्यता का परिमार्जन हुआ, आजकल इतिहासज्ञ विद्वान् पाणिनि को ईसा के पूर्व की षष्ठ शती में नन्द राज्य काल में हुआ मानते हैं।
अमर नामक यों तो अनेक प्राचार्य तथा कवि हो गये हैं, परन्तु यहां पर व्याकरणकारों की पंक्ति में अमर को बैठाया है, वह अमर प्रसिद्ध "अमर कोशकार" अमरसिंह ही हो सकते हैं, ये अमरसिंह विक्रम की पांचवीं शताब्दी के विद्वान् हैं ऐसा संशोधकों ने अनुमान किया है, परन्तु ये अमर व्याकरणकार थे इस मन्तव्य का किसी प्राचीन प्रमाण से समर्थन नहीं होता है।
पण्डित बोपदेव के उक्त श्लोकोक्त आदिशाब्दिकों का आठवां नम्बर “जैनेन्द्र' का है, परन्तु श्लोक में जैनेन्द्र शब्द प्रयुक्त हुआ है जो जिनेन्द्र की कृति को सूचित करता है, इस क्रम भंग से बोपदेव ने अपनी कमजोरी सूचित की है, कुछ भी हो, श्लोक में अन्तिम नाम वाला व्याकरण अथवा वैयाकरण शब्द अर्वाचीन है, यह तो निश्चित है, परन्तु यह अर्वाचीनता किस सीमा तक पहुंचती है, इस प्रश्न पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए । ___ श्वेताम्बर परम्परा की प्राचीन चूणियों तथा प्रकरण अन्थों में जैनेन्द्र व्याकरण का कहीं नाम निर्देश नहीं मिलता, मध्यकालीन सूत्रों की संस्कृत टीकाओं में तथा चरित्रों में भी जहां जहां व्याकरणों के नाम-निर्देश आये हैं अथवा टीकाकारों ने पद सिद्धि के
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