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________________ २३६ को रखा है, इसी प्रकार कारक और अन्य विषय भी जैनेन्द्र ने पाणिनि के ही क्रम से अपने व्याकरण में रखे हैं, परन्तु शाकटायन की बात इससे विपरीत है, पाणिनि के विषय निरूपण क्रम से शाकटायन दूर चले जाते हैं और कलापक के निकट पहुंचते हैं, यों तो जैनेन्द्र में ज्यों के त्यों रखे हुए और कुछ परिवर्तित किये हुए सैकड़ों सूत्र शाकटायन के दृष्टिगोचर होते हैं, फिर भी पाणिनीय के बराबर जैनेन्द्र का शाकटायन के साथ सादृश्य नहीं है । पौर्वापर्य अब हम शाकटायन और जैनेन्द्र व्याकरणों में पूर्वतन कौन है और अर्वाचीन कौन है ? इस बात पर विचार करेंगे, आज-कल के दिगम्बर जैन विद्वानों में इस सम्बन्ध में दो मत हैं, कतिपय विद्वान् कहते हैं - पाणिनीय व्याकरण में "लङः शाकटायनस्यैव " इत्यादि सूत्रों में शाकटायन का मत निर्देश मिलता है, इससे शाकटायन व्याकरण पाणिनि से भी पूर्वकालीन है, तब जैनेन्द्र व्याकरण विक्रम की ६ वीं शती के विद्वान् देवनन्दी की कृति होने से शाकटायन के बाद की रचना है, दूसरे विद्वान् शाकटायन व्याकरण राजा अमोघ वर्षं के गुरु पाल्यकीर्ति अपर नाम शाकटायन की कृति है ओर इसका अनुमित समय विक्रम को नवमी शती का अन्त और दशवीं शताब्दी का पूर्वार्ध होना चाहिए, ऐसा मानते हैं, इस मान्यता वाले विद्वानों की दृष्टि में भी जैनेन्द्र व्याकरण पूज्यपाद आचार्य श्री देवनन्दि की कृति है और इसका समय देवनन्दि का ही सत्ता समय षष्ठी शताब्दी हो सकता है । उपर्युक्त दिगम्बर- परम्परा के विद्वानों के दो मतों में से एक भी मत से हम पूर्ण रूप से सहमत नहीं हो सकते, पाणिनि ने जिन शाकटायन का अपने सूत्रों में मतोल्लेख किया है, वे वैदिक शाकटायन ऋषि थे जिनका नामोल्लेख निरुक्त भाष्य में भी यास्काचार्य ने किया है, इन शाकटायन को अमोघवर्ष कालीन जैन आचार्य शाकटायन को पाणिनि के पूर्ववर्ती ऋषि मानना भ्रांति मात्र है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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