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नहीं है, इस दशा में शाकटायन के इस प्रक्रिया ग्रन्थ के सम्बन्ध में निर्माण काल का ऊहापोह करना निराधार होगा, फिर भी प्रक्रियाकार के अनेक उदाहरणों तथा वाक्य प्रयोगों से इतना तो अनुमान किया जा सकता है कि ग्रन्थ का निर्माण समय तेरहवीं तथा चौदहवीं विक्रमीय शती के पूर्व का नहीं है।
सम्पादकों ने अपनी प्रस्तावना में प्रसिद्ध नैयाकरण पाणिनि की अष्टाध्यायी में आने वाले शाकटायन के नामोल्लेखों से शाकटायन को पाणिनि से पूर्णकालीन मानने की चेष्टा की है, जो उनके ऐतिहासिक ज्ञान का अभाव सूचित करती है, पाणिनि ने जिन शाकटायन का अपने व्याकरण सूत्रों में नामोल्लेख किया है वे शाकटायन उनके पूर्वगामी चैदिक शाकटायन ही हो सकते हैं, पाल्यकीर्ति नामक यापनीय शाकटायन नहीं ।
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