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________________ २२७ तब अभयचन्द्र सूरि की प्रक्रिया में दिए हुए सूत्र २१०५ बताए गए हैं, इससे मालूम होता है कि प्रक्रिया कार ने ११३१ सूत्र छोड़ दिए हैं। प्रक्रिया के सम्पादक पं० ज्येष्ठाराम मुकुन्दजी तथा पं० पन्नालालजी ने अपनी प्रस्तावना में लिखा है कि शाकटायन व्याकरण में तीन प्राचीन आचार्यों के नाम निर्देश हुए हैं, परन्तु हमने मूल सूत्र पाठ तथा प्रक्रिया सूत्र पाठ में 'सिद्धनंदी" तथा "इन्द्र" ये दो ही नाम पाये, “आर्य वज्र"* का नाम सूत्रों में तथा प्रक्रिया में कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुआ, केवल चिन्तामणि टीका वाले शाकटायन में आर्य वज्र के नाम वाला सूत्र उपलब्ध होता है । अ० १, पा० २, सू० ३७ में "इन्द्र" व्याकरणकार का नाम निर्देश निम्न प्रकार से मिलता है-"जराया सिन्द्रस्याचि" १।२।३७।" इसमें अष्ट वैयाकरणों में से पहले “इन्द्र" का नाम होना संभव है, परन्तु २ प्रा० १ पा० २२६ सू० में “शेषात् सिद्धनन्दिनः" २१११२२६ इस प्रकार सिद्धनन्दी का व्याकरण कार के रूप में निर्देश किया है, हमारे विचार से यह एक नयी बात है, क्योंकि अन्य दिगम्बर तथा श्वेताम्बर परम्परा के धार्मिक तथा साहित्यिक ग्रंथों से इस बात का समर्थन नहीं होता, इतना ही नहीं बल्कि प्राचीन व्याकरणकार आचार्यों के नामों में तथा उनके व्याकरण ग्रन्थों के इतिहास में "सिद्धनन्दी" वैयाकरण होने का कोई उल्लेख तक नहीं मिलता, तब आचार्य शाकटायन ने अपने व्याकरण में सिद्धनन्दी का नाम निर्देश करने का क्या कारण पाया होगा यह कहना कठिन है। तब "आर्य वज्र" के सम्बन्ध में तो उनका उल्लेख शाकटायन * “आर्य वज्र" ये श्वेताम्बर परम्परा के दशपूर्वधर युगप्रधान प्राचार्य हो गये हैं, परन्तु जैन परम्परा के किसी सूत्र वा प्रकरण में ऐसा उल्लेख दृष्टिगोचर नहीं होता कि कोई उन्होंने व्याकरण ग्रन्थ बनाया हो, इस परिस्थिति में सम्पादक द्वय ने आर्य वज्र का नामोल्लेख होने का किस आधार से लिखा यह हमारी समझ में नहीं आया। चिन्तामणि टीका वाले शाकटायन में आर्य वज्र के माम वाला सूत्र उपलब्ध अवश्य होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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