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________________ २२५ अभयन्दी प्राचार्य के समय के संबंध में कुछ प्रामाणिक उल्लेख शक संवत् १०३७ का शिला लेख नं. ४७ वां जिसमें त्रैकाल्योगीअभयनन्दि-सकलचन्द्र-मेघचन्द्र--प्रभाचन्द्र मेवचन्द्र के नामों के उल्लेख हैं। शक संवत् १०६८ के शिला लेख नं० ५० वें में भी काल्य . योगी आदि के नाम हैं, त्रैकाल्ययोगी-अभयनन्दी-सकलचन्द्र-मेघचन्द्र यह लेख प्रभाचन्द्र की मरणतिथि का सूचक है। मर्करा के ताम्र पत्र में गुणचन्द्र, अभयनन्दी-शीलभद्र-जयनन्दीगुणनन्दी-चन्द्रनन्दी आदि के नाम हैं पर यह ताम्र पत्र जाली प्रतीत हुआ है। शक सं० ८६३ के शिला ले० नं १५० में देवेन्द्रसैद्धान्तिक-चन्द्रायण भट्टारक-गुणचंद्र भट्टारक के बाद अभयनंदी की शिष्या के स्मारक का उल्लेख है। मल्लिषेण प्रशस्ति का समय शक सं० १०५० जिसमें कि अभयनंदी का नाम है। शब्दार्णव की प्रस्तावना में सम्पादक श्री श्रीलाल का वक्तव्य "संलभ्यते भारतवर्षीयोत्तरदक्षिणप्रांतयोभिन्नभिन्नसंस्करणद्वयं । संति च तत्रोत्तरीय संस्करणे पाणिनीयसूत्रानुकारिखण्डितावयवं सूत्रं, वार्तिकेष्टि प्रभृतयश्च । परं ग्रंथकर्तुर्नाम मंगलाचरण माघंतसूत्रमेव मन्यानेकसूत्राणि चोभयोः समान्येव । संपद्यतेऽतो महान संदेहो यत्कतरनिर्मितमस्मद् भक्तिभाजनपूज्यपादपूज्यपादेन कतरच्चान्येन । नास्ति किंचित्प्रमाणं पूर्वाचार्य निर्दिष्ट मस्मत्समीपे येन शक्नुयाम सरलतया निर्णेतुं ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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