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________________ अध्याय पा० सू०- 17 37 "" "1 27 13 33 " "3 "" $1 11 97 " 32 13 23 31 11 13 11 "" " 11 11 13 32 " 77 १३ स्त्री गो० १४ नांशीयसो ० १५ हृदुप्य. १६ आदेगे. १७ अदेङ ेप् १८ इकस्तौ १६ नधुखे ० २० कृङिति २१ ईदूदेद्. २२ भः २३ न्यजनाः २४ प्रोत् २५ को dat २६ उञः २७ ॐ २१७ अध्याय पा० सू० 11 39 Jain Education International 17 " 11 11 "" 13 "1 11 11 " 13 11 12 39 11 11 "" 31 11 11 11 "" 11 33 11 "1 33 13 १३ उच्चनीचा० १४ व्यामिश्र० १५ आदप् १६ अदेङ १७ इकस्तौ १८ नधुखै ० १६ क्ङिति २० ईदूदेद् ० २१ द्म े: २२ निरेकाज २३ ओत् २४ कौ वेतौ २५ उञः २६ ऊम् २७ दाधा० १ - १ - ४२ पूर्वापरावरदक्षिणो० पूर्वादयो नव-१-१-४२ चन्द्रिका के ४३, ४४, ४५ सूत्र महावृत्ति के ४२वें सूत्र की वृत्ति में । ० पृ० १ - महावृत्ति की वृत्ति में “अपुरीति वक्तव्यम्" यह वार्तिक, शब्दार्णव के प्रथम अध्याय के प्रथम पाद में ११६ वां सूत्र है जबकि १०० सूत्र महावृत्ति में है । महावृत्ति में कुछेक वार्तिक रूप में भी मिलते हैं । शब्दार्णव के ४० सूत्रों के परस्पर शब्द भेद महावृत्ति से, चौकी चिह्नत २४ सूत्रों का उल्लेख सूत्र रूप में है, पर महावृत्ति में वार्तिक रूप में । शब्दार्णव के प्र० अ० द्वितीय पाद के ५४ सूत्रों का शब्दान्तर महावृत्ति से, ३२ सूत्र शब्दार्णव में हैं, वे वार्तिक रूप में महावृत्ति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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