________________
२१०
कि भाष्य पढाया जाना तो क्या उसकी पुस्तक विद्वानों को अपने पास रखना मुश्किल होगया ।
( ५ ) मगध भूमि से निर्वासित होकर महाभाष्य दक्षिणापथ के किसी सुदूर पर्वतीय गांव में प्रकट हुआ, इतना ही नहीं परन्तु उस प्रदेश में उसका अध्ययन भी होने लगा ।
( ६ ) कालान्तर में चन्द्राचार्य आदि विद्वानों ने इस पर समर्थक निबन्ध लिखकर इसकी प्रतिष्ठा बढाई ।
( ७ ) कालान्तर में वसुरात आचार्य ने भी भाष्य पर निबन्ध लिखकर इसको दृढमूल बनाया ।
( ८ ) प्रस्तुत वाक्यपदीयकार विद्वान् भर्तृहरि आचार्य वसुरात को अपना गुरु बताते हैं, परन्तु हमारी राय में वसुरात भर्तृहरि के साक्षात् गुरु न होकर निबन्ध द्वारा उपकारक गुरु होने चाहिए ।
यों तो वाक्यपदीय में व्याकरण के अनेक सिद्धान्तों की चर्चा की गई है, परन्तु उन सब का स्पर्श करने योग्य यह स्थल नहीं, यहाँ हम वैयाकरणों का स्फोट, उनकी परा, पश्यन्ती आदि चार भाषाएं तथा अन्य इसी प्रकार के कुछ नूतन सिद्धान्तों तथा ऐतिहासिक उल्लेखों पर परामर्श कर अवलोकन पूरा करेंगे ।
स्फोट नाद के सम्बन्ध में वैयाकरणों का मन्तव्य"प्रतिविम्बं यथान्यत्र, स्थितं तोयक्रियावशात् । तत्प्रवृत्तिमिवान्वेति स धर्मः स्फोटनादयोः ॥ ४६ ॥
तत्त्विक पक्ष में अथवा सामान्य विचार में जलादि स्थित, स्थिर अथवा चल पदार्थ के प्रतिबिम्ब जलादि की क्रिया के अनुसार चलते फिरतेज्ञात होते हैं, उसी प्रकार नाद के ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, उदात्त, अनुदात्त आदि प्रकार के अनुसार स्फोट की उत्पत्ति होती है । " श्रात्मरूपं यथा ज्ञाने, ज्ञेयरूपं च दृश्यते । रूपं तथा शब्दे, स्वरूपं च प्रकाशते ॥ ५० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org